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२७० शावर तन्त्र शास्त्र
गुण विचार-जब आप प्रयोजन के आधार पर मन्त्रों के ग्रुप (वर्ग) का विचार कर लें तब मन्त्रों के 'गुण' पर ध्यान दें-सतोगुणी मन्त्र का जप करने वाला रजोगुणी या तमोगुणी साधना करें तो काम नहीं बनता। तात्पर्य यह है कि विरोधी गुण वाले मन्त्रों का जाप एक साथ नहीं किया जा सकता है। उदाहरणार्थ-सांसारिक लाभ चाहने वाला व्यक्ति प्रणव मन्त्र "ॐ" का जाप करें तो एक दम उल्टा प्रभाव मिलेगा और मोक्ष चाहने वाले के लिए 'प्रणव' के समान दूसरा मन्त्र नहीं है। इसी प्रकार गायत्री मन्त्र भी शुद्ध सतोगुणी मन्त्र है। जिससे गायत्री मन्त्र सिद्ध किया है। वह भैरव के मन्त्र को सिट नहीं कर सकता । अन्यथा जितने उसने गायत्री मन्त्र के जाप किये हैं उतने भैरव के मन्त्र के जप करने पर उसकी 'जीरो' की स्थिति आयेगी, तत्पश्चात् निर्दिष्ट संख्या में भैरव के जप करने पर ही भैरव की सिद्धि सम्भव हो सकेगी । तात्पर्य यह है कि पूर्ण सतोगुणी मन्त्र का जप करने वाले को रजोगुणी या तमोगुणी मन्त्र का जप, अपना प्रभाव नहीं देगा, जो सांसारिक उन्नति चाहता है उसके लिए रजोगुणी मन्त्र उपयुक्त है। वैगे भी रजोगुनी से सतोगुणी या तमोगुणी साधना में जाना आसान रहता है।
भाव विचार-मन्त्र के चयन करने में अरिभाव या मित्र भाव का भी विचार करना चाहिये। कई बार मन्त्र के प्रथमाक्षर का साधक के नाम के प्रथमाक्षर या जन्म राशि से मेल नहीं बैठता यह 'अरिभाव' कहलाता है । मन्त्र अनुकूल है या नहीं इसके लिए "मित्रारि चक्र" और "कुलाकुल चक्र" द्वारा गणना करनी चाहिए। एक प्रकार के काम के लिए अनेक मन्त्र रहते हैं, उनमें से बहुत आसानों से बनुकुल मन्त्र चुना जा सकता है। '. ऋतु विचार-मन्त्र को उपयुक्तता की गणना करने में ऋतु का भी ध्यान रखना पड़ता है। गर्म मन्त्रों को ठण्डी ऋतु में करने पर कार्य सिद्धि में विलम्ब होना स्वाभाविक है, परन्तु एक ऋतु वर्ष में एक ही बार मा.शी है अतः इसके विकल्प हेतु २४ घन्टे (एक दिन रात) में छः ऋतुएँ मान लो
बलाबल विचार-अब मन्त्र गणना में नम्बर आता है उस व्यक्ति 'शक्ति' का जिसके ऊपर मन्त्र का प्रभाव डालना है। रक्षित, शक्ति म्पन्न , कार्यशील व्यक्ति पर साधारण मन्त्र प्रभाव नहीं दिखा सकते । ऐसे बलाबल का विचार करके मन्त्र गणना करनी होती है।
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