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शावर तन्त्र शास्त्र | २६५ से हमें बल पराक्रम मिलता है, जो मंगल ग्रह की विशेषता है । तात्पर्य यह है कि हनुमानजी का विशेष प्रकार वर्णित रूप में ध्यान करने पर हमारी आत्मिक शक्ति मंगल ग्रह की दिशा में गमन करती है। अब प्रश्न यह है कि शक्ति मंगल तक पहुंचे कैसे ? दिशा का निर्णय तो इष्ट ने कर दिया; दूरी का निर्णय कौन करे। यह निर्णय मन्त्र की जप संख्या और लय पर निर्भर करता है। ऋषियों ने बहुत काल की शोध के उपरान्त अपने विशेष निर्णयों के आधार पर मन्त्रों की जप संख्या निर्धारित की है। मान लीजिये हनुमानजी के किसी विशेष मन्त्र की जप संख्या ६ लाख है। इसका तात्पर्य है कि हनुमानजी के व्यक्त-रूप' का ध्यान करते हुए उस मन्त्र का ६ लाख बार जप किया जाय तो हमारी आत्मिक शक्ति मंगल ग्रह पर पहुंच जायगी। वहाँ से टकराकर जो तरंग पृथ्वी पर वापस आयेंगो वे मंगल ग्रह की शक्ति से प्रभावित रहेंगी और हमें मंगलीय शक्ति प्राप्त हो सकेगी। ग्रह-प्रभावित शक्ति-तरगों का उपयोग विभिन्न प्रकार के कर्म बन्धनों को काटने में सहायक होता है।
जो कर्म हम करते हैं उनके आधार पर उत्पादित भावनाओं का एक आवरण आत्मा के ऊपर अच्छादित हो जाता है, जो कर्म बन्धन कहलाता है । इस प्रकार के लाखों करोड़ों कर्मबन्धन एक-एक आत्मा पर होते हैं । आत्मा स्व प्रकाशित शक्ति स्रोत है, जिसमें से शक्ति तरंगें अनवरत रूप से प्रसारित होती रहती हैं। कमबन्धन की कार्यप्रणाली को समझने के लिए एक और उदाहरण लीजिये-आप सौ-सौ वाट के तीन बल्ब लीजिये; अब एक बल्ब पर एक हजार पारदर्शी प्लास्टिक के आवरण लपेट दोजिये । दूसरे बल्ब पर दो सौ आवरण लपेटिये और तीसरे बल्ब को ऐसे ही रहने दीजिये। अब तीनों बल्ब जलाकर उनकी प्रकाश शक्ति का अवलोकन कीजिये। आप पायेंगे कि तीनों बल्बों के प्रकाश में अन्तर आ जायगा; अर्थात तीनों बल्व की प्रकाश-शक्ति में अन्तर होगा, जबकि वास्तव में तीनों बल्बों की 'प्रकाश-शक्ति' एक जैसी (सौ वाट) ही है। इसी प्रकार प्रत्येक आत्मा की अन्दर की शक्ति एक ही है परन्तु विभिन्न आवरणों के कारण प्रत्येक जीव को आत्मिक शक्ति में अन्तर हो जाता है। अब किसी ब्लेड द्वारा धीरे से सौ-सौ आवरण दोनों बल्वों के ऊपर से काट दीजियं । आप देखेंगे कि बल्ब की प्रकाश-शक्ति बढ़ जाती है; फिर सौ-सौ आवरण और काटिये, प्रकाश-शक्ति और बढ़ जायगी, साथ ही दूसरे नम्बर का बल्ब पूर्ण
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