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शावर तन्त्र शास्त्र | २१९ मन्त-"ॐ क्षां क्षी ह्रीं ह ह ह्रः उच्छिष्टाय स्वाहा ।" कराङ्गन्यास-"ॐ क्षा अङ्ग ष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ क्षीं तर्जनीभ्यां नमः । ॐ ह्रीं मध्यमाभ्यां नमः। ॐ ह्र अनामिकाभ्यां नमः । ॐ ह्र कनिष्ठिकाभ्यां नमः । ॐ ह्रः उच्छिष्टाय स्वाहा करतल करपृष्ठाभ्यां
नमः ।” हृदयादि न्यास- "ॐ क्षां हृदयाय नमः ।
ॐ क्षी शिरसे स्वाहा। ॐ ह्रीं शिखायै वषट् । ॐ ह्र कवचाय हुँ। ॐ ह्रनेत्र त्रयाय वौषट् ।
ॐ ह्रः उच्छिष्टाय स्वाहा । अस्त्राय फट् ।" साधन-विधि___कृष्ण पक्ष की अष्टमी से आरम्भ करके चतुर्दशी पर्यन्त नित्य १०८ की संख्या में जप करने से यह मन्त्र सिद्ध होता है ।
इस मन्त्र की साधना में किसी तिथि नक्षत्र, वार, व्रत आदि का विचार नहीं किया जाता।
ऑक की जड की लकड़ी द्वारा एक अँकठे प्रमाण की गणेश जी की मूर्ति बनाकर, उसे किसी एकान्त स्थान में स्थापित कर, एक युवती स्त्री को अपने सामने बैठा, उसके गुह्याङ्ग से सम्बद्ध हो, २८ बार इस मन्त्र का जप करने से सिद्धि प्राप्त होती है।
कार्तवीर्य--मन्त्र
मन्त्र--"श्रीगणेशायनमः। कार्तवीर्यः खलद्वेषी कृतवीर्य सुतो
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