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२०६ / शावर तन्त्र शास्त्र
परवत, सत्तरा से पहाड़, नौ से नद्दी, निन्नानवे से नाला, हनुवन्त जती गोरख वाला, कांसी की कटोरी अंगुल चार चौड़ी, कहो बीर कहाँ सों चलाई, गिरनारी परवत सों चलाई, अठारा भार बनासपती चली, लोना चमारी की वाचा फुरी, कहां कहां फुरी, चोर के जाय चांडाल के जाइ, कहा कहा लावे, चोर के लावे, गढ़ा धन जाइ बतावे, चाल चाल रे हनुवन्त वीर, जहाँ हो चले, जहाँ है रहै, न चले तो गगा जमुना उल्टी बहै, शब्द सांचा पिण्ड कांचा, मेरी भक्ति गुरू की शक्ति, फुरो मन्त्र ईश्व
रोवाचा सत्य नाम आदेश गुरु का ।" साधन-विधि
तीन पैसा भर वजनी तथा चार अंगुल चौड़ी कांसे की कटोरी को दीवाली की रात्रि में गढ़वाये (बनवाये) फिर उक्त मन्त्र से उड़द पढ़ कर कटोरी की पूजा करें तथा १००८ की संख्या में उक्त मन्त्र का जप करें तो कटोरी एवं मन्त्र सिद्ध हो जाते हैं। प्रयोग-विधि
आवश्यकता के समय उक्त कटोरी को चौक में रख कर, उस पर मन्त्र पढ़-पढ़ कर उड़द मारता जाय तो कटोरी चलने लगेगी और चोरी का माल जहाँ रखा होगा, वहीं जाकर रुकेगी। जब तक कटोरी का चलना बन्द न हो, तब तक उस पर मन्त्र पढ़-पढ़ कर उड़द मारते रहना चाहिए।
चोरी का पता लगाने का मन्त्र (४)
मन्त्र--"ॐ नमो नाहरसिंह वीर, जन-जन तू चाले, पवन चाले,
पानी चाले, चोर का चित्त चाले, चोर मुख लोही चाले, काया थम वै माया परा करे वीर या नाथ की पूजा पाई टले, गोरखनाथ की आज्ञा मेटे नौ नाथ चौरासी सिद्ध की आज्ञा ।"
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