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२१४ | शावर तन्त्र शास्त्र
ॐ धन धान्याधिपतये कवचाय नमः हुँ । ॐ धनधान्य समृद्धि मे नेत्र त्रयाय नमः
वौषट् ।
ॐ देही दायय स्वाहा अस्त्राय नमः फट ।" अथ ध्यान---"मनुमयाह्य विमान वर स्थितं, गरुड़ रत्ननिभनिधि
नायकं । शिवसयांमुकुटादि विभूषितं, वर गदे दधति
भज तुन्दिलम् ।” विधि
इस मन्त्र का.१००००० (एक लाख) की संख्या में जप, जप का दंशांश तिलों से होम, होम का दशांश तर्पण, तर्पण का दशांश मार्जन कर, मार्जन का दशांश ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए। इस विधि से यह मन्त्र सिद्ध हो जाता है तथा साधक के घर में धन-धान्य आदि की वृद्धि करता है ।
मनोकामना-सिद्धि कारक मन्त्र
मन्त्रा-“ॐ आं अं स्वाहा ।" विधि--
इस मन्त्र का प्रतिदिन १००० की संख्या में जप करें। जप-काल में ब्रह्मचर्य का पालन करें तथा हल्का भोजन करें। जब सवा लाख की संख्या में मन्त्र-जप पूर्ण हो जाय; तब जप का दशांश होम और क्रमशः उसके दशांश तपंण, मार्जन तथा ब्राह्मण-भोजन के कृत्य करें। इस प्रकार यह मन्त्र सिद्ध हो जाता है।
मन्त्र सिद्ध हो जाने पर साधक के धन-धान्य तथा ऐश्वर्य की वृद्धि होती है तथा सभी मनोकामनायें पूर्ण होती हैं ।
ऋद्धिदाता-मन्त्रा
मन्त्र- 'ॐ पद्मावती पद्म नेत्रे पद्मासने लक्ष्मी दायिनी वांछा
भूत प्रेत निग्रहणी सर्व - शत्रु संहारिणी दुर्जन मोहिनी ऋद्धि वृद्धि कुरु-कुरु स्वाहा, ॐ ह्रीं श्रीं पद्मावत्यै नमः।"
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