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२०२ | शावर तन्त्र शास्त्र
टीड़ी • लाया । सुमरे टोड़ो बाँधू डाढ, जमीं आस्मान बोच रहस्यो गाढ़ । उतरे तो तेरी परले बाँधू, चढ़े आस्मान तो सर ले साधू । तीजा तेरा जाया पाऊँ, बारा कोस में काम कराऊं। इहि विधि बिचरे बावन वोर । जा डारा समुद्र के तीर । मेरी सीम पर हनुमत गाजे, किसी की चलाई तें चले मेरा डंका चारों कूट में बाजे । इहि विधि चलाई न चलेगो तो एक लाख अस्सो हजार पीर पैगम्बर लाजे, शब्द सांचा पिण्ड काँचा फुरो
मन्त्र ईश्वरोवाचा।" साधन-विधि
दीवाली अथवा होली की रात या ग्रहण में १००८ बार पढ़ने से यह मन्त्र सिद्ध हो जाता है। प्रयोग-विधि
जब कभी यह देखें कि टिड्डी-दल उड़ता हुआ आ रहा है और वह अपने खेत की सीमा में बैठने वाला है. तब एक ठोकरा लेकर उस पर ३ बार मन्त्र पढ़े तथा अपनी कनिष्ठा अँगुली का रक्त उस पर लगायें । तदुपरान्त पैदल अथवा घोड़े पर बैठ कर दौड़ लगाता हुआ, जहाँ जाकर रुके, वहाँ तक टिड्डो दल का पड़ाव नहीं पड़ेगा। इस प्रकार वे साधक के खेत की सीमा से बाहर चली जायेगी।
टिड्डी को वाढ़ बांधने का मन्त्र
मन्त्र-"ॐ नमो आदेश गुरू को अजर बाँधू बजर बाँधू बाँधू
दसों द्वार, लोह का कोड़ा हनुमंत ठोक्या धरती घाले घाव, तेरा टीड़ी भस्मंत हो जाइ कोली टोडी कीलू. नाला, ऊपर ठोकू वज्र का ताला, नोचे भैरू किलकिले ऊपर हनुमत गाजे, हमारी सींव में अन्न पाणी भखे तो गुरु गोरखनाथ लाजे । शब्द साँचा पिण्ड काँचा फुरो भन्त्र ईश्वरोवाचा।"
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