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७. गर्भ, प्रसव एवं रजोधर्म संबंधी प्रयोग
___गर्भ, प्रसव एवं रजोधर्म के विषय में
इस प्रकरण में वध्यत्व-दोष-नाशक, गर्भ-स्थिति कारक, गर्भ-रक्षक, सुख पूर्वक प्रसव कराने में समर्थ तथा असमय प्रारम्भ होने वाले रजःस्राव को, जिसके कारण गर्भ के गिर जाने का खतरा हो, रोकने वाले मन्त्रसाधनों का उल्लेख किया जा रहा है।
नियोग-विधि से गर्भ-धारण की प्रथा प्राचीन काल से भारत में भी प्रचलित थी, जिसका उल्लेख पुराणादि ग्रन्थों में पाया जाता है। नियोगविधि अपनाये जाने पर भी यदि गर्भ-स्थिति न हो तो सारा प्रयत्न ही निष्फल हो जाता है। ऐसे अवसर पर मन्त्र-प्रयोग सहित किये गये प्रयत्न सफलता दायक सिद्ध हो सकते हैं।
___ इसी प्रकार गर्भस्थ शिशु की रक्षा एवं गर्भ-स्राव अथवा गर्भपात को रोकने में भी मन्त्र-प्रयोग अपना चमत्कारी प्रभाव दिखाते हैं। आकस्मिक रूप से होने वाला रजः-स्राव गर्भच्युति का कारण तो बनता ही है, स्त्री के स्वास्थ्य के लिए भी विशेष हानिप्रद सिद्ध होता है। इन संकटों पर भी मन्त्र-साधन द्वारा नियन्त्रण प्राप्त किया जा सकता है।
प्रसव के समय अभूतपूर्व वेदना होती है, उसे कम करने में सुखप्रसव के मन्त्र-प्रयोग हितकर सिद्ध होते हैं। अस्तु, इनका समयानुसार उचित प्रयोग करना आवश्यक है।
नियोग-विधि से गर्भधारण का मन्त्र
जो स्त्रियाँ बाँझ हों और जिनके पति सन्तानोत्पादन करने में असमर्थ (नपुंसक हों, वे यदि नियोग-विधि (पर-पुरुष के साथ सहवास के गर्भ-स्थिति) को अपनाना चाहें तो निम्नलिखित मन्त्रों के प्रयोग से उन्हें एक बार पुत्र का लाभ हो सकता है। इन मन्त्रों के प्रयोग के साथ शर्त
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