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१७८ / शावर तन्त्र शास्त्र
जानुवा, डमरू तथा पसली वाय का मन्त्र
मन्य-- "ॐ नमो खंखारी खंखारा कहां गया सवा लाख परवतो
गया सवा लाख परवतों जाइ का करेगा सवा भार कोइला करेगा सवा भार कोइला कर कहा करेगा हनुमन्त वीर का नव चन्द्रहास खडग करेगा नव चन्द्रहास खडग को धर कहा करेगा जानुवा डमरु पसलीवाय । काटि कूट खारी समुद्र में नाखेगा जागत गुरु की शक्ति
मेरी भक्ति फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा।" साधन एवं प्रयोग विधि
। उक्त मन्त्र किसी शुभ मुहर्त में १००८ बार जपने से सिद्ध होता है । सिद्ध हो जाने पर इस मन्त्र द्वारा तिली के तेल में सिन्दूर मिलाकर, तोर से आँकने पर जानुवा, डमरू तथा पसली वाय को लाभ होता है।
उवा का मन्त्र
मन्त्र- 'ॐ खंखारी खंखारा कहाँ गया, सवा लाख परवतों
गया, सवा लाख पर्वतों जाइ कहा किया, लकड़ कटाया, लकड़ कटाइ कहा किया, कोइला कराया, कोइला कराइ कहा किया, छुरा घड़ाया, छुरा घड़ाइ कहा किया, उवा के हाड़गोड़ कूटि काटि काला कामल में लपेट समुद्र पार बगाया शब्द साँचा पिण्ड कांचा फुरो मन्त्र ईश्वरो
वाचा.।" साधन एवं प्रयोग-विधि
किसी शुभ मुहूर्त में १००८ बार जपने से यह मन्त्र सिद्ध हो जाता है। सिद्ध हो जाने पर ८ अँगुल लम्बा तीर का सांटा लेकर उससे दाढ़ में चोट मारता उवा का रोग दूर हो ।
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