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१६० | शावर तन्त्र शास्त्र
प्रयोग-विधि
न हो ।
मन्त्र
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मन्त्र
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इस मन्त्र से सुई को ७ बार अभिमन्त्रित करके गाल में छेदे तो पीड़ा
अणी-बंध का मन्त्र
- "खं ब्रदर ॐ रक्त वंग सर होड़ निर्विष जागन्त भो नाथ होइ यह निर्विष ।"
प्रयोग-विधि
इस मन्त्र को ३ बार पढ़कर लोहे पर फूकें तो अणी न फूटे और ३ बार मिट्टी पर फूँक कर, उसे अपने शरीर पर लगाये तो अणी न लगे ।
लाय स्तम्भन मन्त्र
- "ॐ नमो कोरा करवा जल सूँ भरिया, ले गोरा के सिर पर धरिया, ईश्वर ढोले गौरजा न्हाई, जलती आग सोतल हो जाइ, शब्द सांचा पिण्ड कांचा फुरो मन्त्र ईश्वरोवाचा ।"
प्रयोग-विधि
कोरा करवा (कुल्हड़ ) लेकर उसमें पानी भरे और उसे उक्त मन्त्र से ७ बार अभिमन्त्रित करें। फिर उस पानी के छींटा जितनी दूर तक लगा सके लगाये, उतनी दूर में लाय नहीं लगेगी ।
पाषाण-स्तम्भन मन्त्रा
नोचे लिखे मन्त्र को पढ़ने से पाषाण (पत्थर) का स्तम्भन होता है । अर्था गिरता हुआ पत्थर रुक जाता है अथवा पत्थर के कारण स्वयं को चोट नहीं लगती
मन्त्र - "समुद्र समुद्र में दीप दीप में कूप कूप में कुइ जहाँ ते बरावत चला हनुमत बराचला, भोला ईश्वर भांजि
चले हरिहर परे चारों तरफ वत चला भीम ईश्वर गौरी
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