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१६२ | शावर तन्त्र शास्त्र
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विधि -
अग्नि- स्तम्भन मन्त्र (1)
निम्नलिखित में से किसी एक मन्त्र को ७ बार पढ़ने से अग्निस्तम्भित हो जाती है अर्थात् जलाने से भी अग्नि नहीं जलती अथवा जलती हुई अग्नि ठण्डी पड़ जाती है ।
मन्त्र -- " अज्ञान बांधो विज्ञान बाँधो बांधौ घोराघाट, आठ कोटि बैसन्दर बाँधी अस्त हमारा भाई आनहि देखें झझके मोहि देखि बुझाइ | हनुवत बाँधौं पानी होइ जाइ अग्नि भवेते के भवे जसमत्तो हाथी होइ बैसन्दर बाँधो नारायण साखि मोरी भक्ति गुरु की शक्ति फुरो मन्त्र ईश्वरो
वाचा ।"
अग्नि-स्तम्भन मन्त्र (२)
मन्त्र ----"अग्नि बाँधों वाहन बाँधों कुल्याहा बाँधो बाँधों बीच की वायु, चारिहु खुटे वैसुंदर बाँधों आतस मेरा भाव । अवर देखे उमगे हमहिं देखे शीतल होइ जाइ, अग्नि गलिगण्डे लकड़ी बाँध बहिनि बांधौ शाल । हाथ जरे न जिह्वा जरे हनुवन्त वीर की आज्ञा फुरे देखि वायु वीर हनुमन्त तेरी भक्ति गुरु की शक्ति फुरो मन्त्र ईश्वरोवाचा ।"
मन्त्र संख्या १ के अनुसार ।
अग्नि-स्तम्भन मन्त्र (३)
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मन्त्र -- "काची हाँडी काचौं पाली, ऊपर वज्र की थाली, नीचे भैरू किल किलाय ऊपर नृसिंह गाजे, जो इस हाँडी को आँच लगे तो अंजनी पुत्र लाजे दुहाई हनुमन्त जती की दुहाई अंजनी के पुत्र की शब्द साँचा पिण्ड काँचा फुरो मन्त्र ईश्वरोवाचा ।"
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