SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 191
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६० | शावर तन्त्र शास्त्र प्रयोग-विधि न हो । मन्त्र www.kobatirth.org मन्त्र Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इस मन्त्र से सुई को ७ बार अभिमन्त्रित करके गाल में छेदे तो पीड़ा अणी-बंध का मन्त्र - "खं ब्रदर ॐ रक्त वंग सर होड़ निर्विष जागन्त भो नाथ होइ यह निर्विष ।" प्रयोग-विधि इस मन्त्र को ३ बार पढ़कर लोहे पर फूकें तो अणी न फूटे और ३ बार मिट्टी पर फूँक कर, उसे अपने शरीर पर लगाये तो अणी न लगे । लाय स्तम्भन मन्त्र - "ॐ नमो कोरा करवा जल सूँ भरिया, ले गोरा के सिर पर धरिया, ईश्वर ढोले गौरजा न्हाई, जलती आग सोतल हो जाइ, शब्द सांचा पिण्ड कांचा फुरो मन्त्र ईश्वरोवाचा ।" प्रयोग-विधि कोरा करवा (कुल्हड़ ) लेकर उसमें पानी भरे और उसे उक्त मन्त्र से ७ बार अभिमन्त्रित करें। फिर उस पानी के छींटा जितनी दूर तक लगा सके लगाये, उतनी दूर में लाय नहीं लगेगी । पाषाण-स्तम्भन मन्त्रा नोचे लिखे मन्त्र को पढ़ने से पाषाण (पत्थर) का स्तम्भन होता है । अर्था गिरता हुआ पत्थर रुक जाता है अथवा पत्थर के कारण स्वयं को चोट नहीं लगती मन्त्र - "समुद्र समुद्र में दीप दीप में कूप कूप में कुइ जहाँ ते बरावत चला हनुमत बराचला, भोला ईश्वर भांजि चले हरिहर परे चारों तरफ वत चला भीम ईश्वर गौरी For Private And Personal Use Only
SR No.020671
Book TitleShavar Tantra Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Dikshit
PublisherDeep Publications
Publication Year1994
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy