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शावर तन्त्र शास्त्र | १४७
बिच्छू-विष झाड़ने का मन्त्र (३)
मन्त्र--"सुरही कारी गाइ गाइ की चमरी पूछी ते करे गोबरे
बिछी बिआइ बीछी तोरे कइ जाति गौरावर्ण अठारह जातिछ कारीछ पीअरीछ भूमाधारीछ रत्न पवारी छ छ कु कुहु कुहुँ छारि उतरु बीछी हाड हाड पोर पोर ते कसमारे लीलकण्ठ गरमोर महादेव की दुहाई गौरा पार्वती की दुहाई अनीत टेहरी शडार बन छाइ उतरहि
बीछो हनुमन्त की आज्ञा दुहाई हनुमन्त की।" साधन-विधि
ग्रहण के समय १०००० की संख्या में जप करने से यह मन्त्र सिद्ध हो जाता है। प्रयोग-विधि-- उक्त मन्त्र को पढ़ते हुए झाड़ा देने से बिच्छू का विष उतर जाता है ।
बिच्छु-विष झाड़ने का मन्त्र (४)
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मन्त्रा- "परबत ऊपर सुरही गाइ ते करे गोवरे बीछो बिआइ छः
कारी छः गोरी छः का जोता उतारिक बिधा बिछिठा बहिआ आठ गाठि नव पोर बोछी करे अजोर बलि चलु चलाइ करवाऊ ईश्वर महादेव की दुहाई जहाँ गुरु के पांव सरके तहहि गुरू के कुश कजुरी तहहि विष्णुपुरी निर्मा
जाइकै दुहाई महादेव गुरु के ठावहिं ठाव बीछी पार्वती ।" साधन-विधि--
ग्रहण के समय १०००० की संख्या में जपने से यह मन्त्र सिद्ध हो जाता है। प्रयोग-विधि
मन्त्र संख्या ३ के अनुसार ।
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