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१५६ | शावर तन्त्र शास्त्र
सावर हेत हवा वडिल भूत ब्याधि डीठि मूठि सब बाँधि के आनो ग्रह गाठकन सुरवायु साजि पङमनै बांध विज्ञत के भैरव टोनहि लेइ आउ भैरवानन्द काशी का कोतवाल बनारसि के षंभ बालु के कीजे हार तेहि लगि
बात है।" विधिपूर्व मन्त्र के अनुसार।
बाल रक्षाकर झाड़े का मन्त्र (३)
मन्त्र—“शुक्र शनिश्चर भीम अवारी कहवा चलेउ डाइनि मारी
हंकिनी डंकिनी चढ़ी पुरुव देशाकै वैसी पीपर के डार सात से योगिनी जागे मशान डीठि मूठि बांधिके आ नगरह गाडकन मुखाय सन्तावे मनैवाद पर भैरव टोनहि
लै आउ।" विधिपूर्व मन्त्र के अनुसार।
बाल रक्षा का झाड़े का मन्त्र (४)
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मन्त्र--"षिल लौराई षिललौलीन षिलौसोपनु सजांकालां मीडीठि
अग्नि परोसे जेवे गरुड़ पाथरखाई भस्मत भैजाई पत्थर शिलउ पत्थणि षिलावंरंडषिलषिलंग परबत हाथ चढ़ा बशकरौं धौक लोहे को चना चण्डी डीठि मूठि भस्मत होइ जाइ अपनी डीठि पर डीठि पर पीठि पाछे घालु बाटवीर हनुवन्त तेरी शक्ति।"
बाल रक्षा का गण्डा (ताबीज)
क्वारी कन्या के हाथ से कते हुए सूत के तेरह धागे में कच्चा घोंघा डालकर, उसमें १६ बासमती चावलों को राँध कर भर दें तथा उसका
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