________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भावर तात्र शास्त्र | १२५ यही है कि गर्भ स्थिति के लिए पर-पुरुष के वीर्य का ही उपयोग करना चाहिए। मन्त्र-"विष्णुर्योनि कलपयतुत्वष्टारूपाणि पिंशतु आसिं ब्रजंतु
प्रजापति ता गर्भ विदधातु गर्भ धेहि सिनीवाली गर्भ
धेहि सरस्वती गर्भते अश्विनौ देवा अधत्तांपुष्कर सजौ।" प्रयोग-विधि
इस मन्त्र को ३, ७ अथवा २१ बार पढ़ कर वीर्य धारण करना चाहिए।
नियोग-विधि से गर्भ-धारण का मन्त्र (२)
..
....
....
....
....
....
........
....
मन्त्र- 'ॐ नमो आदेश गुरु को ॐ नमो आदेश गुरु को बांझिन
पुत्रिनि एक बांझ मराक्ष जाति चौथो गर्भ पालिनी चारि उन्हि एकमत भय चली चली कामरू गई कामरू देश कामाक्षा रानी ते इस्माइल योगी बषानी तुम जाहु योगि के पास पुरहि तो हरि मन के आस इस्माइल के संग उन्ह रतिकइ आंतर भेंटनो नावमा इनी से भइ नोने कहा तहु चारिहु छिनारी कोषित निति कीन्हन देहगारी कोषि निति कुन्ती पाँच संगषेली एक द्रोपदी पाँच के सहेली सूरज देवता साषी होहु मोरे जिवमे भा सन्ताप मोहि तजि लागे पर पुरुष के पाप एक बूद निति अकरम कीन्ह तेहिते है वंश कर चोन्ह शिववाचा ब्रह्मवाचा लेहु जमाउ ठोना टमाना भूत प्रेत दोष रोग जो लाख होइ तेहि जग
चण्डी जाउ हरिजंबीर ।" प्रयोग विधि
इस मन्त्र को १ या ३ बार पढ़ कर वीर्य धारण करना चाहिए।
For Private And Personal Use Only