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झाड़ा देने के विविध मन्त्र
झाड़ा देना
विभिन्न प्रकार की विपत्तियों के निवारणार्थ झाड़ा (झारा) देने की प्रथा हमारे देश के प्रायः सभी भागों में अत्यन्त प्राचीन काल से प्रचलित है। जिस जमाने में आधुनिक-चिकित्सा सुविधाएं सर्वत्र यथेष्ट मात्रा में उपलब्ध नहीं थीं, तब अधिकांश रोगियों की चिकित्सा में इसी का प्रयोग किया जाता था। नगरों से बहत दूर बसे गाँवों, वन-पर्वतों की बस्तियों तथा अन्य दुर्गम स्थानों में आज भी इसका सर्वाधिक प्रयोग प्रचलित है।
झाड़ा देने वाले लोगों को प्रायः ओझा अथवा सयाने के नाम से जाना जाता है । स्थानिक भाषाओं में इनके अन्य नाम भी हैं। 'ओझा' शब्द का प्रयोग सम्भवतः 'झाड़ा' (झारा) शब्द के प्रथम अक्षर के आगे 'ओ' सम्बोधन लगाकर प्रचलित हुआ होगा । 'सयाने' का अर्थ तो चतुर अथवा होशियार है ही। जो लोग विभिन्न रोगों का मन्त्रोपचार करने में होशियार थे, उन्हें 'सयाना' कहा जाने लगा होगा, जो कि बाद में इस कार्य के करने वालों के लिए 'रूढ़' बन गया।
____ झाड़ा देने में अधिकतर मोर पंख का प्रयोग किया जाता है । अर्थात् दस-बीस मोर पंखों को इकट्ठा बाँध कर उन्हें मन्त्रोच्चारण करते हुए रोगी के सिर से पाँव तक लाया जाता है । मोर पंख के अभाव में 'कुश' (दाभ) से भी झाड़ा दिया जाता है। कई मन्त्रों में राख (भस्म) का प्रयोग भी किया जाता है।
प्रस्तुत प्रकरण में विभिन्न रोगों से सम्बन्धित झाड़ा देने के अनेक मंत्र प्रस्तुत किये गये हैं।
कर्णमूल झाड़ने का मन्त्र
मन्त्र---“वनाह गाठि बनरौ तौ डाठे हनुमान् कंठा बिलारी बाघी
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