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११० / शावर तन्त्र शास्त्र
जागते नृसिंह मोया आगे भैरू किल्किलाय ऊपर हनुमन्त गाजे दुर्जन को वार दुष्ट को मार सिंहारए जा हमारे सत्त गुरू हम सत्त गुरू के बालक मेरी भक्ति गुरू की शक्ति
फुरो मन्त्र ईश्वरोवाचा ।" साधन विधि
होली, दीवाली, ग्रहण अथवा किसी शुभ मुहूर्त से मन्त्रा को जपना आरम्भ करें। १०००० की संख्या में जपने से मन्त्र सिद्ध हो जाता है। २१ दिन या ४० दिन में जप पूरा कर लेना चाहिए। जप की अवधि में मंगलवार के दिन ७ पान के बीड़ा तथा ७ लड्डू का भोग रखना चाहिए तथा अन्य बारों में नित्य १ बोड़ा पान, बतासे रखने चाहिए तथा प्रतिदिन धूप, दीप, नैवेद्य से हनुमान जी का पूजन करना चाहिए एवं इत्र में सिन्दूर सानकर तथा सुगन्धित पुष्प चढ़ाने चाहिए। इस विधि से सांधन करने पर मन्त्र सिद्ध हो जाता है। प्रयोग-विधि
(१) पृथ्वी पर शत्रु की मूर्ति बनाकर उसमें आगे प्रदर्शित चित्र के अनुसार जहाँ-तहाँ '' बीज लिखकर मूर्ति की छाती में शत्रु का नाम लिलें। फिर मन्त्र पढ़ कर उसके सिर पर जता मारे तो बैरी का सिर फूटता है और वह रोता है तथा उसकी बुद्धि नष्ट हो जाती है।
अथवा (२) आगे प्रदर्शित चित्र के अनुसार एक मोम का पुतला बनाकर; उस पर जहाँ-तहाँ 'हुँ' बीज लिखें। बीज-मन्त्रा लिखते समय पूर्व दिशा की और मुंह करके बैठना चाहिए । पुतली की छाती पर शत्रु का नाम लिखें। फिर मुर्दे की हड्डी की एक कील उस पुतली की छाती में गाढ़ कर, पुतली को श्मशान भूमि में गाढ़ कर, मुर्दे के हाड़ की भस्मी से उसे ढंक दें तो बैरी बावला होकर कभी भागेगा, कभी चलने से रुक जायेगा और बीमार रहेगा।
जब तक पुतली को पृथ्वी से बाहर नहीं निकाला जायेगा, तब तक दुश्मन के सिर पर हजारों विपत्तियाँ मँडराती रहेंगी । पुतली को उखाड़ देने पर आफतें टल जायेंगी, अन्यथा वह मर जायेगा।
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