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४ उच्चाटन, विद्वेषण एवं मारण प्रयोग
उच्चाटन, विद्वेषण एवं मारण
के विषय में 'उच्चाटन' का अर्थ है --किसी व्यक्ति को अपने स्थान से हटने के लिए, उसके मन को उच्चाटित कर देना । अर्थात् उच्चाटन मन्त्र का प्रयोग करने पर साध्य-व्यक्ति अपने निवास स्थान से स्वयं ही हट कर कहीं अन्यत्र चला जाता है। ऐसे प्रयोग प्रायः अपने किसी शत्रु को, उसके आवास-स्थान से हटा देने के लिए किये जाते हैं और आवश्यक होने पर इनका प्रयोग अनूचित भी नहीं माना जाता, क्योंकि इन प्रयोगों से शत्र अथवा विरोधी केवल अपना स्थान ही छोड़ता है, उसे अन्य कोई कष्ट नहीं होता।
'विद्वेषण' का अर्थ है-किन्हीं दो मित्रों अथवा प्रेमियों में,परस्पर विरोध उत्पन्न करा देना। जब कभी यह अनुभव हो कि कोई दो व्यक्ति संयुक्त रूप से हानि पहुँचाने के इच्छुक हैं, उस समय उन दोनों में परस्पर विरोध करा देने से प्रयोगकर्ता का हित-साधन होता है। अतः आवश्यकता के समय 'विद्वेषण' का प्रयोग भी अनुचित नहीं माना जाता।
'मारण' का अर्थ है-किसी व्यक्ति की मृत्यु के लिए मन्त्र-प्रयोग करना । यह प्रयोग अत्यन्त गहित माना गया है, क्योंकि इससे एक प्राणी की हत्या हो जाती है, अतः मारण-मन्त्र का प्रयोग खूब सोच-समझ कर तथा नितान्त आवश्यक होने पर ही करना चाहिए। स्मरणीय है कि किसी की हत्या के पाप का फल साधक को भी किसी-न-किसी रूप से अवश्य भोगना पड़ता है, अतः यदि अनिवार्य विवशता न हो तो मारण-प्रयोग का साधन हर्गिज नहीं करना चाहिए।
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