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अर्थ-जिस दशा में पिता, माता, भाई और पुत्र भी हित के लिए प्रवृत्ति नहीं करते (बल्कि अहित के लिए ही प्रवृत्ति करते हैं), सैन्य भी दुर्बल हो जाय और धनुष-बाण को धारण करने में भुजाएँ भी असमर्थ हो जायें, ऐसी कष्टदशा के विपाक समय में, अच्छी तरह से बद्ध कवच वाला सज्जन रूप धर्म ही सर्व जगत् के रक्षण के लिए उद्यमशील होता है ॥ १२६ ।।
विवेचन आपत्ति में धर्म ही सहायक है
कर्म की गति न्यारी है। जब अशुभ कर्म का उदय प्राता है, तब व्यक्ति आपत्ति के बादलों से घिर जाता है। जन्म देने वाले माता-पिता भी उसके विरुद्ध हो जाते हैं। भाई तो उसका मुह भी देखना नहीं चाहता है और मित्रमण्डल आदि तो दृष्टि से भी अगोचर हो जाते हैं।
अनेक महासतियों के जीवन-चरित्रों के निरीक्षण से यह बात पूर्णतया स्पष्ट हो जाती है ।
सती अंजना एक महान् पतिव्रता और श्रेष्ठ नारी थी, परन्तु जब उसके दुर्भाग्य का उदय हुआ, तब उसकी सास ने उस पर कलंक लगा दिया। इतना ही नहीं, घोर अपमान के साथ तिरस्कारपूर्वक उसे घर से निकाल दिया। विकट परिस्थिति में फँसी हुई सती अंजना जब अपने पिता के घर में प्रवेश करने जाती है तब उसकी सगी माँ भी उसका घोर अपमान कर उसे बाहर निकाल देती है। पूर्व जन्म के पापोदय के कारण सती अंजना को न पति का आश्रय मिला "न सास का""न ससुर कान माता
शान्त सुधारस विवेचन-१२