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है। धर्म के समस्त फल का वर्णन करने में कोई समर्थ नहीं है। चौदह राजलोक में धर्म का प्रभाव प्रत्यक्ष है।
धर्म के पुण्य प्रभाव से ही सूर्य प्रतिदिन उगता है और जगत् के जीवों को प्रकाश प्रदान करता है। धर्म का ही प्रभाव है कि रात्रि में चन्द्रमा अन्धकार को दूर करता है। सूर्य और चन्द्र नियमित रूप से जगत् के जीवों को सतत प्रकाश देने का जो कार्य कर रहे हैं, यह साक्षात् धर्म का ही प्रभाव है।
वैशाख और ज्येष्ठ मास में भयंकर गर्मी पड़ती है, उस गर्मी से सभी जीव अत्यन्त सन्तप्त हो जाते हैं। उस गर्मी की भयंकर पीड़ा को दूर करने के लिए मेघराजा जोर से वर्षा करता है; उस वर्षा से अत्यन्त सन्तप्त पृथ्वी भी शान्त हो जाती है और खुशहाली में हरियाली की हरी चादर ओढ़ लेती है। यह सब धर्म का ही साक्षात् प्रभाव है।
इतना ही नहीं लवणसमुद्र आदि अपनी मर्यादा को त्यागकर जम्बुद्वीप में भयंकर हानि आदि कभी नहीं करते हैं, यह भी धर्म का ही पुण्य प्रभाव है।
व्याघ्र आदि जंगल में रहते हैं, नगर में आकर हिंसादि नहीं करते हैं, पवन अनुकूल बहता है और आग महा अनर्थ नहीं करती है, यह सब धर्म का ही प्रभाव है।
धर्म के प्रभाव की क्या बात करें ? दुनिया में जो कुछ भी शुभ है, सुख और शान्ति है, वह सब धर्म का ही प्रत्यक्ष प्रभाव है।
चौदह राजलोक अपनी स्थिति में सदा रहा हुआ है, मेरुपर्वत
शान्त सुधारस विवेचन-१०