________________
(१०) तप-तप अर्थात् आत्मा पर लगे हुए कर्मों को तपाने की एक यौगिक प्रक्रिया। तप से कर्म क्षीण होते हैं।
उपर्युक्त दस प्रकार के यतिधर्म के पालन से आत्मा कर्म के बन्धनों से मुक्त बनकर शाश्वत अजरामर पद को प्राप्त करती है। यस्य प्रभावादिह पुष्पदन्तौ ,
विश्वोपकाराय सदोदयेते । ग्रीष्मोष्मभीष्मामुदितस्तडित्वान् , काले समाश्वासयति क्षिति च ॥१२७॥
. (इन्द्रवज्रा) उल्लोलकल्लोलकलाविलास
न प्लावयत्यम्बुनिधिः क्षिति यत् । न घ्नन्ति यव्याघ्रमरुद्दवाद्याः धर्मस्य सर्वोऽप्यनुभाव एषः ॥१२८॥
(इन्द्रवज्रा) अर्थ-इसके (धर्म के) प्रभाव से ही सूर्य और चन्द्रमा विश्व के उपकार के लिए सदा उदित होते हैं और ग्रीष्म के भयंकर ताप से संतप्त बनी पृथ्वी को समय पर मेघ शान्त करता है ।। १२७ ।।
अर्थ-उछलती हुई जल-तरंगों से समुद्र पृथ्वीतल को डुबा नहीं देता है तथा व्याघ्र, सिंह, तूफान और दावानल (सर्व प्राणियों का) संहार नहीं करते हैं; यह धर्म का ही प्रभाव है ।। १२८ ॥
विवेचन धर्म का अचिन्त्य प्रभाव
जिनेश्वरदेव के द्वारा बतलाए हुए धर्म का फल अचिन्त्य
शान्त सुधारस विवेचन-६