________________ षष्टः सर्गः परस्त्रीदुकूलापहरणेन यत् पापम् किल्विषम् तेन संतापम् दुःखम् अवाप प्राप्तवान् / अबूद्धिपूर्वकं कृतेनापि परस्त्रीविवसनीकरणेन नलः परमदुःखोबभूवेति भावः // 28 / ___व्याकरण--संघट्यन्त्या सम् + घट्ट + णिच् + शतृ + ङीप् / भूषा -भूष्यतेऽनयेति भूष + क ( करणे ) + टाप् / परिपाप्य परि + Vधा + णिच पुगागम + ल्यप् / भूपः भुवम् पातीति भू +/पा+ क ( कर्तरि)। अनुवाद-जोर से टकराती हुई (किसी ) कृशांगी का अपने भूषणों में ( जड़े ) हीरों की नोकों पर फंसा वस्त्र खींचते हुए राजा नल उसके नितम्ब को नग्न करके उस पाप से दुःखी हुए // 28 // . टिप्पणी-यहां दु:खी हो जाने का कारण बता देने से कायलिंग है। दुःख विषाद का पर्याय है, जो सञ्चारी भावों में गिना जाता है, इसलिए भावोदयालंकार भी है। और कोई युवा होता, तो इस बात से प्रसन्न हो जाता किन्तु नल उदात्त चरित्र थे अतः उन्हें विषाद होना स्वाभाविक है / 'हीरा' 'हारी' में छेक, 'पाप, ताप, वाप' में तुक मिलने से पदान्तगत अन्त्यानुप्रास और अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है / हतः कयाचित्पथि कन्दुकेन संघट्टय भिन्नः करजैः कयापि। कयाचनाक्तः कुचकुङ्कुमेन संभुक्तकल्पः स बभूव ताभिः // 29 / अन्वयः-स पथि कयाचित् कन्दुकेन हतः; कया अपि संघट्टय करजः भिन्नः; कयाचन कुच-कुङ्कुमेन अक्तः; (एवम् ) ताभिः संमुक्त कल्पः बभूव / टीका-स नलः पथि चतुष्पथे कयाचित् सुन्दर्या कन्दुकेन गेंडुकेन हतः ताडितः अन्यस्याः सख्युः पार्वे प्रक्षिप्तः कन्दुकः मध्येऽअदृश्यरूपेण स्थिते नले लग्न इति भावः; कया अपि युवत्या संघट्टय अभिहत्य करजैः अङ्गुलिभिः भिन्नः उल्लिखितः; कयाचन तरुण्या कुचयोः स्तनयोः कुकुमेन काश्मीरजेन अक्तः लिप्तः आलिङ्गन द्वारा स्वकुचलिप्तकुंङकुमं राजनि संक्रमितमित्यर्थः; एवम् ताभिः सुन्दरीभिः नलः ईषद् ऊनः संभुक्त इति संभुक्तकल्पः कृतसंभोगप्रायः बभूव जातः, ताभिः नलेन सह बाह्यरतिः कृतेति भावः / / 29 // व्याकरण-करजैः करयोः जायन्ते इति कर + जन् + डः / अक्तः अञ्ज + क्तः ( कर्मणि ) / संयुक्तकल्पः सम् + भुज + क्त + कल्पप् / अनुवाद - वे ( नल ) मार्ग में किसी ( युवती ) द्वारा गेंद से मारे गये; किसी द्वारा टकराकर नाखूनों से खरोच दिये गये और किसी द्वारा ( आलिंगन