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सप्तविंशतितम पर्व प्रविशभिश्च निर्यद भिः अपर्यन्तैनियोगिभिः। महाब्धेरिव कल्लोलैः तटमाविर्भवद्ध्वनि ॥१४॥ अनतोत्सारणव्यग्रमहादौवारपालकम् । कृतमङगलनिर्घोषं वाग्देव्येव कृतास्पदम् ॥१४६॥ चिरानुभूतमप्येवम् अपूर्वमिव शोभया । नृपो नृपाङगणं पश्यन् किमप्यासीत् सविस्मयः ॥१४७॥ निधयो यस्य पर्यन्ते मध्ये रत्नान्यनन्तशः । महतः शिबिरस्यास्य विशेषं कोऽनुवर्णयेत् ॥१४८॥
शार्दूलविक्रीडतम्
स श्रीमानिति विश्वतः स्वशिबिरं लक्ष्म्या निवासायितं
पश्यन्नात्तधतिविलङध्य विशिखाः स्वर्गापहासिश्रियः । सम्भाम्यत्प्रतिहाररुद्धजनतासम्बाधमुत्केतनं
प्राविक्षत् कृतसन्निवेशमचिरादात्मालयं श्रीपतिः ॥१४॥ तत्राविष्कृतमङगले सुरसरिद्वीचीभुवा वायुना
सम्मष्टाङगणवेदिके विकिरता तापच्छिदः शीकरान् । शस्ते वास्तुनि विस्तृते स्थपतिना सद्यः समुत्थापिते
लक्ष्मीवान् सुखभावसनधिपतिःप्राची दिशं निर्जयन् ॥१५०॥
जो कहींपर किसी बड़े भारी बगीचाके समान जान पड़ता है और कहीं अनेक राजाओंकी मण्डलीसे युक्त होनेके कारण सभामण्डपके समान मालूम होता है, जो प्रवेश करते हुए और बाहर निकलते हुए अनेक कर्मचारियोंसे लहरोंसे शब्द करते हुए किसी महासागरके किनारेके समान जान पड़ता है। जहां पर बड़े बड़े द्वारपाल लोग मनुष्योंकी भीडको दूर हटाने में लगे हुए हैं, जहां अनेक प्रकारके मंगलमय शब्द हो रहे हैं और इसीलिये जो ऐसा जान पड़ता है मानो सरस्वती देवीने ही उसमें अपना निवास कर रखा हो तथा जो चिरकालसे अनुभूत होनेपर भी अपनी अनोखी शोभासे अपूर्वके समान मालूम हो रहा है ऐसे राजभवनके आंगनको देखते हुए महाराज भरत भी कुछ कुछ आश्चर्यचकित हो गये थे ।।१४२-१४७॥ जिसके चारों ओर निधियां रक्खी हुई है और बीचमें अनेक प्रकारके रत्न रखे हुए हैं ऐसे उस बड़े भारी शिबिर की विशेषताका कौन वर्णन कर सकता है ॥१४८। इस प्रकार लक्ष्मीके निवासस्थानके समान सुशोभित अपने शिबिरको चारों ओरसे देखते हुए जो अत्यन्त संतुष्ट हो रहे हैं ऐसे लक्ष्मीपति श्रीमान् भरतने, चारों ओर दौड़ते हुए द्वारपालोंके द्वारा जिसमें मनष्योंकी भीड़ का उपद्रव दूर किया जा रहा है, जिसपर अनेक पताकाएं फहरा रही हैं, और जिसमें अनेक प्रकारकी रचना की गई है ऐसे अपने तम्बमें शीघ्र ही प्रवेश किया ॥१४९।। जिसमें मंगलद्रव्य रखे हुए हैं, गङ्गा नदीकी लहरोंसे उत्पन्न हुए तथा संतापको दूर करनेवाली जलकी बंदोंको बरसाते हए वायसे जिसके आंगनकी बेदी साफ की गई है, जो प्रशंसनीय है, विस्तत है तथा स्थपति (शिलावट) रत्नके द्वारा बहुत शीघ खड़ा किया गया है, बनाया गया है ऐसे तंबूमें पूर्व दिशाको जीतनेवाले, निधियोंके स्वामी श्रीमान् भरतने सुखपूर्वक निवास किया
१ रथ्याः । 'रथ्या प्रतोली विशिखा' इत्यमरः । २ विहितसम्यग्रचनम् । ३ भरतेश्वरः । ४ सम्माजित । ५ गृहे । ६ पूर्वाम् ।
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