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মধু नखांश कसुमो दैः पारक्तः पाणिपल्लवैः। तास्तव्यो भुजशाखाभिः भेजुः कल्पलताश्रियम् ॥ ३७॥ स्तनाब्जकुटमलैरास्यपडाकजैश्च विकासिमिः। अब्जिन्य इव तारेजुः मदनावासभूमिकाः ॥ ३८॥ मन्य पात्राणि गात्राणि तासां कामग्रहोच्छितौ। पदावेशवशादेष दशां प्राप्तोऽतिवतिनीम् ॥ ३९ ॥ शडक निशातपाषाणानखानासां मनोभुवः। यत्रोपारूतुतेक्षण्यैः स्वः अविष्यत् कामिनः शरैः ॥४०॥ सत्यं महेषुधी जङघे तासां मदनबन्विनः । कामस्यारोहनिःश्रेणी स्थानीयावरुदण्डकौ ॥४१॥ कटो कुटी मनोजस्य काञ्चीसालकृतावृतिः। नाभिरासां गभीरका कूपिका चित्तजन्मनः ॥ ४२ ॥ मनोभुवोऽतिवृद्धस्य मयेऽवष्ट म्भ यष्टिका। रोमराजिः स्तनौ चासां कामरत्नकरण्डकौ ॥४३॥ कामपाशायतौ बाहू शिरीषोद्गमकोमलौ । कामस्योच्छ वसितं कण्ठः सुकण्ठीनां मनोहरः ॥ ४४ ॥ मुखं रतिसुखागारप्रमुखं मुखबन्धनम् । वैराग्यरससङगस्य तासां च दशनच्छदः ॥४५॥ दृग्विलासाः शरास्तासां कर्गान्तौ लक्ष्यतां गतौ । भ्रूवल्लरी धनुर्यष्टिः जिगीषोः पुष्पधन्विनः ॥ ४६ ।। ललाटाभोगमतासां मन्य बाह्यालिकास्थलम्। अनङगनपतरिष्ट भोगकन्दुकचारिणः ॥४७॥ १२अलकाः कामकृष्णाह: शिशवः१५ परिपुञ्जिताः। कुञ्चिताः केशवल्लयों मदनस्येव बागराः ॥४८॥
वाले जिनके नेत्ररूपी बाणोंसे यह समस्त संसार जीता गया था ऐसी बत्तीस हजार रानियां और भी उनके अन्तःपुरमे थों ॥३६।। वे छियानबे हजार रानियां नखोंकी किरण रूपी फूलोंके खिलनेसे, कुछ कुछ लाल हथेलीरूपी पल्लवोंसे और भजारूपी शाखाओंस कल्पलताकी शोभा धारण कर रहीं थीं ॥३७॥ कामदेवके निवास करनेकी भूमिस्वरूप वे रानियां स्तनरूपी कमलोंकी बोड़ियोंसे और खिले हुए मुखरूपी कमलोंसे कमलिनियोंके समान सशोभित हो रही थों ॥३८॥ मैं समझता हूँ कि उन रानियोंके शरीर कामरूपी पिशाचकी उन्नतिक पात्र थे क्योंकि उनके आवेशके वशसे ही यह कामदेव सबको उल्लंघन करनेवाली विशाल अवस्थाको प्राप्त हुआ था ॥३९।। अथवा मुझे यह भी शंका होती है कि उन रानियोंके नख, कामदेवके बाण पैने करने के पाषाण थे क्योंकि वह उन्हींपर घिसकर पैने किये हुए बाणोंसे कामी लोगोंपर प्रहार किया करता था ॥४०॥ यह भी सच है कि उनकी जंघाएँ कामदेवरूपी धनुर्धारीके बडे बडे तरकस थे और ऊरुदण्ड (घटनोंसे ऊपरका भाग) कामदेवके चढनेकी के समान थे ॥४१॥ करधनीरूपी कोटसे घिरी हुई उनकी कमर कामदेवकी कुटीके समान थी और उनकी नाभि कामदेवकी गहरी कुपिका (कुइयाँ) के समान जान पड़ती थी ॥४२॥ मैं मानता हूँ कि उनकी रोमराजि कामदेवरूपी अत्यन्त वृद्ध पुरुषके सहारेकी लकड़ी थी और उनके स्तन कामदेवके रत्न रखनेके पिटारे थे ॥४३॥ शिरीषके फूलके समान कोमल उनकी दोनों भुजाएँ कामदेवके पाशके समान लम्बी थीं और अच्छे कण्ठवाली उन रानियोंका मनोहर कण्ठ कामदेवके उच्छ्वासके समान था ॥४४॥ उनका मुख रति (प्रीति) रूपी सखका प्रधान भवन था और उनके ओंठ वैराग्यरसकी प्राप्तिके मुखबन्धन अर्थात् द्वार बन्द करनेवाले कपाट
५॥ उन रानियोंके नेत्रोंके कटाक्ष विजयकी इच्छा करनेवाले कामदेवके बाणोंके समान थे, कानके अन्तभाग उसके लक्ष्य अर्थात् निशानोंके समान थे और भीहरू पी लता धनुषकी लकड़ीक समान थी ॥४६॥ में समझता हूँ कि उन रानियोंके ललाटका विस्तार इष्टभोग रूपी गेंदसे खेलनेवाले कामदेवरूपी राजाके खेलनेका मानो मैदान ही हो ॥४७॥ उनके
१ चक्री। २ शङकां करोमि । ३ प्राप्त । ४ सदृशौ इत्यर्थः । ५ आधार । ६ जीवितम् । ७ प्रकृष्टद्वारम् । ८ पीनाहः । 'पीनाहो मुखबन्धनमस्य यत्' इत्यभिधानात् । ६ रदनच्छदः -ल० । १० सेतुः । 'सेतुरालौ स्त्रियां पुमान्'। ११ इष्टभोगा एव कन्दुक । १२ चूर्णकुन्तला । 'अलकाश्चूर्णकुन्तला' इत्यभिधानात् । १३ शावकाः । 'पृथुकः शाबकः शिशुः' इत्यभिधानात् । १४ मृगबन्धनी ।
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