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षट्चत्वारिंशत्तम पर्व 'यत्यन्तप्रभयाऽभवत्खगपति वर्मा हिरण्यादिवाकर
देवः कल्पगतो मया' सह महादेव्याऽजनीडयो भवान् ॥३६८॥ सकलमविकलं तत्सप्रपञ्चं रमण्या
मुखकमलरसाक्तं श्रोत्रपात्रे निधाय । तदुदितमपरञ्च श्रोतुकामो जयोऽभू
नरसिक दयितोक्तः कामुकास्तप्नुवन्ति ॥३६६॥
इत्या भगवद्गुणभद्राचार्यप्रणीते त्रिषष्ठिलक्षणमहापुराणसडग्रहे जयसुलोचनाभवान्तरवर्णनं नाम
षट्चत्वारिंशत्तमं पर्व ॥॥४६॥
पूज्य देव हए ।।३६८॥ इस प्रकार जयकुमार प्रियाके मखरूपी कमलके रससे भीगे हए मनोहर, पूर्ण और विस्तारयुक्त वचनोंको अपने कर्णरूपी पात्रमें रखकर उसके द्वारा कहे हुए अन्य वृत्तान्त को सुननेकी इच्छा करने लगा सो ठीक ही है क्योंकि कामी पुरुष स्त्रियोंके रसीले वचनोंसे कभी तृप्त नहीं होते हैं ॥३६९॥ इस प्रकार भगवद्गुणभद्राचार्य विरचित त्रिषष्टिलक्षण महापुराण संग्रहके हिन्दी भाषानुवादमें जयकुमार और सुलोचनाके भवान्तर वर्णन
करनेवाला छियालीसवां पर्व समाप्त हुआ।
१ प्रभावत्या सहेत्यर्थः। २ विद्याधरपतिः। ३ हिरण्यवर्मा । ४ सुलोचनया सह । ५ जयः । ६ रससम्बद्धम् । ७ रसनप्रियदयितावचनैः ।
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