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सप्तचत्वारिंशत्तमं पर्व राजराजस्तदा भूरिविभूत्याऽभ्यत्य तं मुदा । श्रीपालः पूजयित्वा तु श्रुत्वा धर्म द्वयात्मकम् ॥१८६॥ ततः स्वभावसम्बन्धम् अप्राक्षीत् प्रश्रयाश्रयः । भगवांश्चेत्युवाचेति कुरुराज सुलोचना ॥१६॥ निवेदितवती पृष्टा मृष्टवाक्सौष्ठवान्विता । विदेहे पुण्डरीकिण्यां यशःपालो महीपतिः ॥१६॥ तत्र सर्वसमृद्धाख्यो वणिक तस्य मनःप्रिया। धनञ्जयानुजाताऽसौ धनश्रीर्धनद्धिनी ॥१६२॥ तयोस्तुक' सर्वदयितः श्रेष्ठी तद्भगिनी सती । संज्ञया सर्वदयिता श्रेष्ठिनश्चित्तवल्लभे ॥१३॥ सुता सागरसेनस्य जयसेना समाह्वया । धनञ्जयवणीशस्य जयदत्ताभिधाऽपरा ॥१६४॥ देवश्रीरनुजा श्रेष्ठ पितुस्तस्यां तनूभवौं । जातौ सागरसेनस्य सागरो दत्तवाक्परः ॥१६॥ ततः समुद्रदत्तश्च सह सागरदत्तया। सुतौ "सागरसेनानुजायां जातमहोदयौ ॥१६६॥ जातौ सागर सेनायां दत्तो वैश्रवणादिवाक् । दत्ता वैश्रवणादिश्च दायादः श्रेष्ठिनः५ स तु॥१६७॥ भार्या "सागरदत्तस्य दत्ता८ वैश्रवणादिका । सती समुद्रदत्तस्य सा सर्वदयिता० प्रिया ॥१६॥ सा वैश्रवणदत्तेष्टा दत्तान्ता सागरावया । तेषां२२ सुख ३ सुखेनैवं काले गच्छति सन्ततम् ॥१६॥ यशःपालमहीपालमाजित "महाधनः। वणिग्धनञ्जयोऽन्येद्युः सद्रत्नदर्शनीकृतैः२५ ॥२०॥
उन्हींका पहला गणधर हुआ ॥१८८॥ उसी समय राजाधिराज श्रीपालने बड़ी विभूतिके साथ आकर गुणपाल तीथ करकी पूजा की और गृहस्थ तथा मुनि सम्बन्धी-दोनों प्रकारका धर्म सुना । तदनन्तर बड़ी विनयके साथ अपने पूर्वभवका संबंध पूछा, तब भगवान् इस प्रकार कहने लगे-यह सब बातें मधुर वचन बोलनेवाली सुन्दरी सुलोचना महाराज जयकुमारके पूछनेपर उनसे कह रही थी। उसने कहा कि
विदेह क्षेत्रकी पुण्डरीकिणी नगरीमें यशपाल नामका राजा रहता था ॥१८९-१९१॥ उसी नगरमें सर्वसमृद्ध नामका एक वैश्य रहता था। उसकी स्त्रीका नाम धनश्री था जो कि धनको बढ़ानेवाली थी और धनंजयकी छोटी बहिन थी। उन दोनोंका पुत्र सर्वदयित सेठ था, उसकी बहिनका नाम सर्वदयिता था जो कि बड़ी ही सती थी। सेठ सर्वदयितकी दो स्त्रियां थीं, एक तो सागरसेनकी पुत्री जयसेना और दूसरी धनंजय सेठकी पुत्री जयदत्ता ॥१९२१९४॥ संठ सर्वदयितकं पिताकी एक छोटी बहिन थी जिसका नाम देवश्री था और वह संठ सागरसेनको ब्याही थी। उसके सागरदत्त और समद्रदत्त नामके दो पुत्र थे तथा सागरदत्ता नामकी एक पुत्री थी। सागरसेनकी छोटी बहिन सागरसेनाके दो संतानें हुई थीं-एक वैश्रवणदत्ता नामकी पुत्री और दूसरा वैश्रवणदत्त नामका पुत्र । वैश्रवणदत्त सेठ सर्वदयितका हिस्सेदार था ।।१९५-१९७॥ वैश्रवणदत्ता सेठ सागरदत्तकी स्त्री हुई थी, सेठ समुद्रदत्तकी स्त्रीका नाम सर्वदयिता था और सागरदत्ता सेठ वैश्रवणदत्तको ब्याही गई थी। इस प्रकार उन सबका समय निरन्तर बड़े प्रेमसे व्यतीत हो रहा था ॥१९८-१९९।। जिसने बहुत धन उपार्जन किया है ऐसे सेठ धनंजयने किसी दिन अच्छे अच्छे रत्न भेंट देकर राजा यशपालके दर्शन किये
१ गुणपालकेवलिनम् । २ जयकुमारम् । ३ भगिनी। ४ पुत्रः । ५ राजश्रेष्ठी। ६ धनञ्जयनामवैश्यस्य। ७ द्वितीया। ८ सर्वदयितश्रेष्ठिजनकसर्वसमृद्धस्य । ६ पुत्रौ। १० देवश्रियोर्भर्तुर्भगिन्याम् । ११ सर्वसमृद्धस्य भार्यायाम् । १२ दत्ता अ०, प०, इ०, स०, ल०। १३ दत्तो ल०, ५०, इ०, अ०, स० । १४ ज्ञातिः । १५ सर्वदयितश्रेष्ठिनः । १६ वैश्रवणदत्तः । १७ सागरसेनस्य ज्येष्ठपुत्रस्य। १८ वैश्रवणदत्ता। भार्याभूदिति सम्बन्धः । १६ सागरसेनस्य कनिष्ठपुत्रस्य। २० सर्वदयितवेष्ठिनो भगिनीप्रिया । भार्या जातेति सम्बन्धः । २१ समुद्रदत्तस्यानुजा सागरदत्ताह्वया । वैश्रवणदत्तस्येष्टा बभूवेति सम्बन्धः । २२ समुद्रादीनाम् । २३ अकृच्छ ण, अत्यन्तसुखेनेत्यर्थः । २४ आनीत । २५ उपायनीकृतैः ।
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