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सप्तचत्वारिंशत्तमं पर्व
५०६ प्रतिगद्धः पुरा पश्चान्नारकोऽन चमूरकः । दिवाकरप्रभो देवस्तथा मतिवराह्वयः ॥३६३॥ ततोऽहमिन्द्रस्तस्माच्च सुबाहुरहमिन्द्रताम् । प्राप्य त्वं भरतो जातः षट्खण्डाखण्डपालकः ॥३६४॥ आद्यः सेनापतिः पश्चादार्यस्तस्मात्प्रभडकरः। ततोऽकम्पनभूपालः कल्पातीतस्ततस्ततः ॥३६॥ महाबाहुस्ततश्चाभूद् अहमिन्द्रस्ततश्च्युतः । एष बाहुबली जातो जातापूर्वमहोदयः ॥३६६॥ मन्त्री प्राग्भोगभूजोऽनु सुरोऽन कनकप्रभः । प्रानन्दोऽन्वमिन्द्रोऽनु ततः पीठाह्वयस्ततः ॥३६७॥ अहमिन्द्रोऽग्रिमोऽभूवम् अहमद्य गणाधिपः । पुरोहितस्ततश्चार्यो बभूवास्मत्प्रभञ्जनः ॥३६॥ धनमित्रस्ततस्तस्माद् अहमिन्द्रस्ततश्च्युतः। महापीठोऽहमिन्द्रोऽस्माद् अनन्तविजयोऽभवत् ॥३६६॥ उग्रसेनश्चमूरोऽतो भोगभूमिसमुद्भवः । ततश्चित्राङगदस्तस्माद् वरदत्तः सुरो जयः ॥३७०॥ ततो गत्वाऽहमिन्द्रोऽभूत्तस्माच्चागत्य भूतलम् । महासेनोऽभवत् कर्ममहासेनाजयोजितः ॥३७१॥ हरिवाहननामाद्यो वराहार्यस्ततोऽभवत् । मणिकुण्डल्यतस्तस्माद् बरसेनः सुरोत्तमः ॥३७२॥ ततोऽस्माद् विजयस्तस्माद् अहमिन्द्रो दिवश्च्युतः । अजनिष्ट विशिष्टेष्टः श्रीषणः सेवितः श्रिया ॥२७३॥ नागदत्तस्ततो वानरार्योऽस्माच्च मनोहरः । देवश्चित्राङगदस्तस्माद् अभूत सामानिकः सुरः ॥३७४॥
ततश्च्युतो जयन्तोऽभूद् अहमिन्द्रस्ततस्ततः। महीतलं समासाद्य गुणसेनोऽभवद् गणी ॥३७॥ आकर दानतीर्थका नायक तथा पंचाश्चर्यकी सबसे पहले प्रवृत्ति करानेवाला राजा श्रेयान् हुआ है ।।३६०-३६२।। तेरा जीव पहले भवमें अतिगृद्ध नामका राजा था, दूसरे भवमें नारकी हुआ, तीसरे भवमें शार्दूल हुआ, चौथे भवमें दिवाकर प्रभदेव हुआ, पांचवें भवमें मतिवर हुआ, छठवें भवमें अहमिन्द्र हुआ, सातवें भवमें सुबाहु हुआ, आठवें भवमें अहमिन्द्र हुआ और नौवें भवम छह खण्ड पृथिवीका अखण्ड पालन करनेवाला भरत हुआ है ।।३६३-३६४॥ बाहुबलीका जीव पहले सेनापति था, फिर भोगभूमिमें आर्य हुआ। उसके बाद प्रभंकर देव हुआ तदनन्तर अकंपन हुआ, उसके पश्चात् अहमिन्द्र हुआ, फिर महाबाहु हुआ, फिर अहमिन्द्र हुआ और अब उसके बाद अपूर्व महा उदयको धारण करनेवाला बाहुबली हुआ है ॥३६५-३६६।। मैं पहले भवमें राजा प्रीतिवर्धनका मंत्री था, उसके बाद भोग-भूमिका आर्य हुआ, फिर कनकप्रभ देव हुआ, उसके पश्चात् आनन्द हुआ, फिर अहमिन्द्र हुआ, वहांसे आकर पीठ हुआ, फिर सर्वार्थसिद्धिका अहमिन्द्र हुआ और अब भगवान् वृषभदेवका गणधर हुआ हूं। अनन्तविजयका जीव सबसे पहले पुरोहित था, फिर भोगभूमिका आर्य हुआ, उसके बाद प्रभंजन नामका देव हुआ, फिर धनमित्र हुआ, उसके पश्चात् अहमिन्द्र हुआ, उसके अनन्तर महापीठ हुआ, फिर अहमिन्द्र हुआ और अब अनन्तविजय गणधर हुआ है ॥३६७-३६९॥ महासेन पहले भवमें उग्रसेन था, दूसरे भवमें शार्दूल हुआ, तीसरे भवमें भोगभूमिका आर्य हुआ, चौथे भवमें चित्राङ्गद देव हुआ, पांचवें भवमें वरदत्त राजा हुआ, छठवें भवमें देव हुआ, सातवें भवमें जय हुआ, वहांसे चलकर आठवें भवमें अहमिन्द्र हुआ और नौवें भवमें वहांसे पृथिवीपर आकर कर्मरूपी महासेनाको जीतने में अत्यन्त बलवान् महासेन हुआ है ॥३७०-३७१॥ श्रीषेणका जीव पहले भवमें हरिवाहन था, दूसरे भवमें वराह हुआ, तीसरे भवमें भोगभूमिका आर्य हुआ, चौथे भवमें मणिकुण्डली देव हआ, पांचवें भवमें वरसेन नामका राजा हआ, छठवें भवमें उ देव हुआ, सातवें भवमें विजय हुआ, आठवें भवमें अहमिन्द्र हुआ और नौवें भवमें अतिशय पूज्य तथा लक्ष्मीसे सेवित श्रीषण हुआ है ॥३७२-३७३॥ गुणसेनका जीव पहले नागदत्त था, फिर वानर हुआ, उसके बाद भोगभूमिका आर्य हुआ, फिर मनोहर नामका देव हुआ, उसके पश्चात् चित्राङ्गद नामका राजा हुआ, फिर सामानिक देव हुआ, वहांसे च्युत होकर
१ व्याघः । २ पूर्वभवे ।
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