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सप्तचत्वारिंशत्तमं पर्व
प्रागुक्तकरवालेशः पुरोऽभूद् विजया ह्वये । सोऽस्य' सेनापतिर्भावी भविष्यच्चक्रवर्तिनः ॥ १४०॥ तत्पुरे वर कीर्तीष्टकीर्तिमत्यात्मजापने । खड्गोत्पाटनमादेशस्तस्य श्रीपालचक्रिणः ॥ १४१ ॥ मूकः श्रेयः पुरे जातस्तस्य भावी पुरोहितः । शिवसेनमहीपालः श्रीमांस्तन्नगरेश्वरः ॥ १४२॥ शोका या तस्य तनूजा वनजे क्षणा । मूकभाषणमादेशः कुमारस्य तदापने" ॥१४३॥ "कुण्डः शिल्पपुरोत्पन्नः स्थपतिस्तस्य भाव्यसौ । नाम्ना नरपतिस्तत्पुरेशो नरपतेः सुता ॥ १४४ ॥ रत्यादिविमलासार्द्धं तथैतस्य समागमः । श्रङ्गुलिप्रसरादेशात् स्मरव्यपदया' चिरम् ॥ १४५ ॥ स वज्रमणिपाकस्य प्रधानपुरुषो भवेत । तस्य' धान्यपुरे "जातिविशालस्तत्पुराधिपः ॥ १४६ ॥ सुता विमलसेनास्य श्रीपालस्य तदाप्तये । श्रावेशस्तस्य तद्वज्जमणिपाको महौजसः ॥ १४७ ॥ इत्यादेश" वरं ज्ञात्वा सर्वे स्वं स्वं पुरं ययः । तदा कुमारमूद्वाऽयान्नभोभागे सुखावती ॥ १४८ ॥ धूमवेगो विलोक्यैनं विद्विषो भीवणारवः । श्रभितर्ज्या स्थितो रुध्वा खे खेटकयुतासिभृत् ॥ १४६॥ तदा "पूर्वोदिताचार्य देवता याऽस्य" पालिका " । सा विद्याधररूपेण समुपेत्य सुखावतीम् ॥ १५०॥ ॥ १३९ ॥ श्रीपालने जो तलवार म्यानसे निकाली थी उसका स्वामी विजयपुर नगरका रहने वाला था और होनहार इसी श्रीपाल चक्रवर्तीका भावी सेनापति था ।। १४०॥ उसी विजयपुर नगरके राजा वरकीर्तीष्टकी रानी कीर्तिमतीकी एक पुत्री थी, उसके वरके विषयमें निमित्तज्ञानियोंने बतलाया था कि इसका वर श्रीपाल चक्रवर्ती होगा और उसकी पहिचान म्यानमेंसे तलवार निकाल लेना होगी || १४१ ॥ | वह गूंगा श्रेयस्पुरमें उत्पन्न हुआ था और इसका भावी पुरोहित था, उसी श्रेयस्पुर नगरका स्वामी राजा शिवसेन था, उसके कमलके समान नेत्रवाली वीतशोका नामकी पुत्री थी उसके वरके विषयमें निमित्तज्ञानियोंने आदेश दिया था कि जिसके समागमसे यह गूँगा बोलने लगेगा, वही इसका वर होगा ।। १४२ - १४३ || जिसकी अंगुली टेढ़ी थी वह शिल्पपुरमें उत्पन्न हुआ था और इसका होनहार स्थपति रत्न था । उसी शिल्पपुर के राजाका नाम नरपति था उसके रतिविमला नामकी पुत्री थी, निमित्तज्ञानियोंने बताया था कि जिसके देखनेसे इसकी टेढ़ी अंगुली फैलने लगेगी उसीके साथ कामक्रीड़ा करनेवाली इस कन्याका चिरकाल तक समागम रहेगा ।। १४४ - १४५ ।। जो हीराओं का भस्म बना रहा था वह इसका मंत्री होनेवाला था और धान्यपुर नगरमें पैदा हुआ था, उसी धान्यपुर नगरके राजाका नाम विशाल था उसकी एक विमलसेना नामकी कन्या थी, निमित्तज्ञानियोंने बतलाया था कि जिसके आनेपर हीराओंका भस्म बन जायगा वही महा तेजस्वी श्रीपाल इसका पति होगा ।।१४६-१४७।। इस प्रकार निमित्तज्ञानियोंके आदेशानुसार उस पुरुषको पहिचान कर वे सब अपने अपने नगरको चले गये और उसी समय सुखावती श्री कुमारको लेकर आकाशमार्गसे चलने लगी ॥ १४८ ॥ | चलते चलते इसे धूमवेग शत्रु मिला, वह कुमारको देखकर भयंकर शब्द करने लगा, और डांट दिखाकर रास्ता रोक आकाशमें खड़ा हो गया, उस समय खेटक और तलवार दोनों शस्त्र उसके पास थे || १४९ ।। उसी समय पहले कही
१ श्रीपालस्य । २ वरकीर्तिनृपतेः प्रियायाः कीर्तिमत्याः सुतायाः आपने परिणयने । ३ 'पन व्यवहारे स्तुतौ च' पुत्रीव्यवहारे त० टि० । -त्यात्मजापतेः इ० । जायते अ०, स०, ल० । ४ वीतशोकायाः परिणयने । ५ कुणिः ल० । ६ कामविशिष्टधर्मप्रदया अथवा कामविविधगमनप्रदया । ७ वज्रमणिपाक्यस्य ल०, ८० । वज्रमणिपाकी वज्ज्ररत्नपाकवान् । अस्य श्रीपालस्य । ८ मन्त्रिमुख्यः । ६ वज्रमणिपाकिनः । १० उत्पत्तिः । ११ विमलसेनायाः प्राप्त्यै । १२ आदेशजामातरम् । –देशनरं ल०, प० । - देशान्तरं अ०, स० । १३ शत्रोर्भयङकरध्वनिः । तद्विषो भीषणारवम् इ०, अ०, स० । १४ पूर्वोक्तप्रमदवनस्थवटतरोरवस्थितप्रतिमायाम् । १५ श्रीपालस्य । १६ रक्षिका ।
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