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महापुराणम्
रितोऽप्यायस्वीकर्तुमागरम । इति स
तत्र काचिद् प्रियं वीक्ष्य' कयाशेषं द्विषच्छरैः । स्वयं कामशरैरक्षताडगी चित्रमभूद् व्यसुः ॥२६३॥ 'क्षतैरनुपलक्ष्याङगं वीक्ष्य कान्तमजानती। परा परासुता' 'प्रापज्ज्ञात्वाऽऽत्मविहितवणः ॥२४॥ मया निवारितोऽप्याया' वीरलक्ष्मीप्रियः प्रिय । तत्कठोरवणरेव' जातोऽसीति मृता०परा ॥२६॥ मां निवार्य सहायान्तों कोति स्वीकर्तुमागमः । निर्मलेति विपर्यस्तो जानन्नपि बहिश्चरीम् ॥२६६॥ स्थिता तत्रैव सा कीर्तिः किं वदन्ति "नरोऽन्तरम् । इति सासू५ यमुक्त्वाऽन्या "प्रायासीत् १"प्रियपद्धतिम् न किं निवारिताऽप्यायां त्वया साद्धं विचेतना सन्निधौ मे किमेवं त्वां नयन्ति गणिकाधमाः२० ॥२६८ २९प्रस्तुकियातमद्यापि तत्र त्वां न हराणि" किम् । विलप्यवं कलालापा काचित् कान्तानुगाऽभवत् २६६ शरनिभिन्नसर्वाङगः कीलितासुरिवापरः। कान्तागमं प्रतीक्ष्यास्त लोचनस्थितजीवितः ॥३०॥ कोपदष्टविमुक्तौष्ठं कान्तमालोक्य कामिनी । वीरलक्ष्म्या कृतासूया क्षणकोपाऽसुमत्यजत् ॥३०१॥ .
हृदि निभिन्ननाराचो मत्वा कान्ता हृदि स्थिताम् । हा मृतेयं बराकीतिप्राणान् कश्चिद् व्यसर्जयत् ॥३०२। पतिके समागम होनेसे वचनातीत आनन्दका अनुभव कर रही थीं ॥२९२॥ उन स्त्रियोंमेंसे कोई स्त्री अपने पतिको शत्रुओंके बाणोंसे मरा हुआ देखकर आश्चर्य है कि कामके बाणोंसे शरीर क्षत न होनेपर भी स्वयं मर गई थीं ॥२९३॥ अन्य कोई अजान स्त्री वावोंसे जिसके अंग उपांग ठीक-ठीक नहीं दिखाई देते ऐसे अपने प्रिय पतिको देखकर और उन्हें अपने द्वारा ही किये हुए घाव समझकर प्राणरहित हो गई थीं ॥२९४॥ हे प्रिय, तुम्हें वीर लक्ष्मी बहुत ही प्यारी थी इसीलिये मेरे रोकनेपर भी तुम उसके पास आये थे अब उसी वीरलक्ष्मीके कठोर घावोंसे तुम्हारी यह दशा हो रही है यह कहती हुई कोई अन्य स्त्री मर गई थी ॥२९५।। हे प्रिय, मैं उसी समय आपके साथ आ रही थी परन्तु आप मुझे रोककर कीर्तिको स्वीकार करने के लिये यहाँ आये थे, यद्यपि आप यह जानते थे कि कीति सदा बाहर घूमनेवाली (स्वैरिणीव्यभिचारिणी) है तथापि यह शुद्ध है ऐसा आपको भ्रम हो गया, अब देखिये, वह कीर्ति वहीं रह गई, हाय, क्या मनुष्य हृदय अथवा विरहको जानते हैं ? इस प्रकार ईर्ष्याके साथ कहकर अन्य कोई स्त्री अपने पतिके मार्गपर जा पहुंची थी अर्थात् पतिको मरा हुआ देखकर स्वयं भी मर गई थी ॥२९६-२९७।। हे प्रिय, रोकी जाकर भी मैं मूर्खा आपके साथ क्यों नहीं आई ? क्या मेरे समीप रहते ये नीच वेश्याएँ (स्वर्गकी अप्सराएँ) इस प्रकार तुम्हें ले जातीं? खैर, अब भी क्या गया ? क्या मैं वहाँ उनसे तुम्हें न छीन लूंगी ! इस प्रकार विलाप कर मधुर स्वरवाली कोई स्त्री अपने पतिकी अनुगामिनी हुई थी अर्थात् वह भी मर गई थी ॥२९८२९९। जिसका सब शरीर बाणोंसे छिन्न भिन्न हो गया है, और इसलिये ही जिसके प्राण कीलितसे हो गये हैं तथा नेत्रोंमें ही जिसका जीवन अटका हुआ है ऐसा कोई योद्धा अपनी स्त्री के आनेकी प्रतीक्षा कर रहा था ॥३००। जिसने क्रोधसे अपने ओठ डसकर छोड़ दिये हैं ऐसे अपने पतिको देखकर क्षणभर क्रोध करती और वीरलक्ष्मीके साथ ईर्ष्या करती हुई किसी अन्य स्त्रीने अपने प्राण छोड़ दिये थे ॥३०१।। जिसके हृदयमें बाण घुस गया है ऐसे किसी योद्धाने
१ वार्तयेवावशिष्टं प्रियं श्रुत्वेत्यर्थः । २ वैरिणां बाणरुपलक्षितम् । ३ विगतप्राणः । ४ वणः । ५ पञ्चत्वम् । ६ प्राप ल०, अ०, स०, इ०, प०। ७ आत्मना नखदन्तकृतवणः । ८ आगमः । ९ वीरलक्ष्म्या निष्ठुरम् । १० ममार । ११ आगच्छः । १२ वैपरीतं नीतः । वञ्चित इत्यर्थः । १३ विदन्ति ल०। १४ नरः मनुष्याः. अन्तरं विरहम् । नरोत्तरमिति पाठे उत्तमपुरुषम् । १५ असूया सहितं यथा भवति तथा । १६ आगात् । १७ प्रियतमस्य मार्गम् । मतिमित्यर्थः । १८ आगच्छम् । १६ वराक्यहम् । २० अमुख्यदेवस्त्रियः । २१ भवतु वा। २२ गमनम्। २३ स्वर्गे। २४ अपि तु हराव । २५ प्रियतमस्यानुगामिन्यभूत् । कान्तास्मरणेन स्मरवशोऽभदित्यर्थः । २६ सद्यः प्राणान् व्यसर्जयत् ल० ।
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