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महापुराणम् तदा पूर्वोदितो देवः समागत्य सुसम्पदा । सुलोचनाविवाहोरुकल्याणं समपादयत् ॥३२॥ मेघप्रभसुकेत्वादिसत्सहायान सहानुजः । जयोऽप्यगमयत् सर्वान् सन्तर्बिहुप्रियः ॥३३॥ "नाथवंशाग्रणीश्चामा "जामात्राऽलोच्य सत्वरम् । सुधीः स्वगृहसाराणि बध्वा रत्नाग्युपायनम् ॥३४॥ विदितप्रस्तुतार्थोऽसि यथाऽसौ नः प्रसीदति । तथा कुविति चक्रेशं सुमुखाख्यमजीगमत् ॥३५॥ प्राशु गत्वा निवेद्यासौदष्ट्वेशं धरणौ तनुम् । क्षिप्त्वा प्रणम्य दत्वा च प्राभतं निभ'ताञ्जलिः देवस्यानुचरो देव प्रणम्याकम्पनो भयात । देवं विज्ञापयत्येवं प्रसादं कुरु तच्छणु ॥३७॥ सुलोचनेति न. "क-यासारस्त्वद्विहितश्रिये५ । स्वयंवर विधानेन सम्प्रादायि जयाय सा ॥३८॥ "तत्रागत्य कुमारोऽपि प्राक् सर्वमनु"मत्य तत् । विद्याधरधराधीशैः सुप्रसन्नैः सह स्थितः ॥३६॥ पश्चात् कोऽपि ग्रहः क्रूरः स्थित्वा सह शुभग्रहम् । खलो बलाद्यथाऽस्मभ्यं वृथा कोपयति स्म तम् ॥४०॥ विज्ञातमेव देवेन सर्व तत्संविधानकम् । २२चारचक्षश्च वेत्त्येतिक पुनः सावधिर्भवान् ॥४१॥ २"कुमारो हि कुमारोऽसौ नापराधोऽस्ति कश्चन । "तत्र तस्य सदोषाः स्मो वयमेव प्रमादिनः ॥४२॥ है ॥३१॥ उसी समय पहले कहे हुए देवने आकर बड़े वैभवके साथ सुलोचनाके विवाहका उत्सव सम्पन्न किया ॥३२॥ सबके प्यारे जयकुमारने भी अपने छोटे भाइयोंके साथ साथ मेघप्रभ सुकेतु आदि अच्छे अच्छे सब सहायकोंको धन द्वारा संतुष्ट कर बिदा किया ॥३३॥
तदनन्तर नाथवंशके शिरोमणि अतिशय बुद्धिमान् अकंपनने अपने जमाई जयकुमारके साथ सलाह की और अपने घरके अच्छे अच्छे रत्न भेंटमें देनेके लिये बांधकर सुमुख नामक दूतको यह कहकर चक्रवर्ती के पास भेजा कि तू वर्तमानका सब समाचार जानता ही है, चक्रवर्ती जिस प्रकार हम लोगोंपर प्रसन्न हों वही काम कर ॥३४-३५॥ उस दूतने शीघ्र ही जाकर पहले अपने आने की खबर भेजी फिर चक्रवर्तीके दर्शन कर पृथिवीपर अपना शरीर डाल प्रणाम किया और फिर हाथ जोड़कर साथमें लाई हुई भेंट देकर कहा कि हे देव, अकंपन नामका राजा आपका अनुचर है वह प्रणाम कर भयसे आपसे इस प्रकार प्रार्थना करता है सो प्रसन्नता कीजिये और उसे सन लीजिये ॥३६-३७॥ उसने कहा है कि सुलोचना नामकी मेरी एक उत्तम कन्या थी वह मैंने स्वयंवर-विधिसे आपने ही जिसकी लक्ष्मी अथवा शोभा बढ़ाई है ऐसे जयकुमारके लिये दी थी ॥३८॥ कुमार अर्ककी तिने भी उस स्वयंवरमें पधारकर पहले सब बात स्वीकार कर ली थी और वे प्रसन्न हुए विद्याधर राजाओंके साथ साथ वहां विराजमान थे ॥३९॥ तदनन्तर जिस प्रकार कोई दुष्ट शुभ ग्रहके साथ ठहरकर उसे भी दुष्ट कर देता है उसी प्रकार किसी दुष्टने जबर्दस्ती हम लोगोंपर व्यर्थ ही उन्हें क्रोधित कर दिया ॥४०॥ इसके बाद वहां जो कुछ भी हुआ था वह सब समाचार आपको विदित ही है क्योंकि गुप्तचर रूप नेत्रोंको धारण करनेवाला साधारण राजा भी जब यह सब जान लेता है तब फिर भला आप तो अवधिज्ञानी हैं, आपका क्या कहना है ? ॥४१॥ कुमार तो अभी कुमार (लड़का) ही है इसमें उनका कुछ भी दोष नहीं है, प्रमाद करनेवाले केवल हम लोग ही उसमें सदोष हैं
१ स्वयंवरनिर्माण प्रोक्तविचित्राङगकसुरः । २ सहानुजान् प०, इ०, म०, ल०। ३ बहवः प्रियाणि मित्राणि यस्य सः । ४ अकम्पनः । ५ पुत्र्याः प्रियेण सह । ६ निजगृहे स्थितेषूत्कृष्टानि । ७ प्रामृतम् । ८ चक्री। सुमुखाह्वयदूतम् । १० गमयति स्म । ११ दूतः । १२ भूम्याम् । १३ स्थिराञ्जलिः। १४ कन्यासूत्कृष्टत्वात् । १५ त्वया कृतैश्वर्याय जयाय सम्प्रादामीति सम्बन्धः । १६ दत्ता। १७ स्वयंवरे । १८ अनुमतिं कृत्वा । १६ स्वयंवरविधानम् । २० चन्द्रादिशुभग्रहान्वितं यथा भवति तथा स्थित्वा कोपयति तं तथेति सम्बन्धः । २१ तद्वत्तान्तम् । २२ चारा गूढपुरुषा एव चक्षुर्यस्य । २३ अवधिज्ञानसहितः । २४ बालकः । २५ संविधाने । २६ सापराधाः । २७ भवामः ।
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