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महापुराणम् अन्येद्यः खचराधीशो घोषयित्वा' स्वयंवरम् । सिद्धकूटाख्यचैत्यालयस्य मालां पुरःस्थिताम् ॥१५७॥ अपातयन्महामेरुं त्रिः परीत्य महीतलम् । अस्पृष्टां खेचराः केचित्तां ग्रहीतुमनीश्वराः ॥१५८॥ अपां गताः समादाय प्रभावत्या विनिजिताः । समो ननु न मृत्युश्च मानभङगेन मानिनाम् ॥१५॥ ततो हिरण्यवर्मास्याद् गतियुद्धविशारदः । मालामासञ्जयामास तत्कण्ठे तेन निजिता ॥१६०॥ तयोः जन्मान्तरस्नेहसमुद्धसुखसम्पदा । काले गच्छति कस्मिश्च (चित्) कपोतद्वयदर्शनात् ॥१६॥ ज्ञातप्राग्भवसम्बन्धा सुविरक्ता प्रभावती। स्थिताशोकाकुलकेव' चिन्तयन्ती किमप्यसौ ॥१६२॥ हिरण्यवर्मणा ज्ञातजन्मना लिखितं स्फुटम् । पट्टकं प्रियकारिण्या हस्ते समवलोक्य तम् ॥१६३॥ क्व लब्धमिदमित्याख्यत् प्राह सापि प्रियेण ते लिखितं चेटकस्तस्य सुकान्तो मे समर्पयत् ॥१६४॥ इति तद्वचनं श्रुत्वा स्वयमप्यात्मवृत्तकम् । प्राक्तनं पट्टके तस्या लिखित्वाऽसौ करे ददौ ॥१६॥ तविलोक्य कुमारोऽभूत् प्रभावत्यां प्रसक्तधीः। साऽपि तस्मिन् तयोः प्रीतिः प्राक्तन्याद्विगुणाऽभवत् सम्भूय बान्धवाः सर्व कल्याणाभिषवं तयोः । अकुर्वन्निव कल्याणं द्वितीयं ते चिकीर्षवः ॥१६७॥ दशम्यां३ सिद्धकूटाने स्नानपूजाविधौ सुवित् । हिरण्यवर्मणा वीक्ष्य परमावधिचारणः ॥१६८॥
दूसरे दिन राजाने स्वयंवरकी घोषणा कराकर कहा कि 'एक माला सिद्धकूट नामक चैत्यालयके द्वारसे नीचे छोड़ी जायगी' जो कोई विद्याधर माला छोड़नेके बाद महामेरु पर्वतकी तीन प्रदक्षिणाएं देकर प्रभावतीके पहले उसे जमीनपर पड़नेके पहले ही ले लेगा वही इसका पति होगा' यह सुनकर बहुतसे विद्याधरोंने प्रयत्न किया परन्तु पूर्वोक्त प्रकारसे माला न ले सके इसलिये प्रभावतीसे हारकर लज्जित होते हुए चले गये सो ठीक ही है क्योंकि मृत्यु भी अभिमानी लोगों के मानभंग की बराबरी नहीं कर सकती है ॥१५७-१५९॥ तदनन्तर गतियुद्ध करनेमें चतुर हिरण्यवर्मा आया और उससे हारकर प्रभावतीने वह माला उसके गलेमें डाल दी ।।१०६।। पूर्व जन्मके स्नेहसे बढ़ी हुई सुखरूप सम्पत्तिसे जब उन दोनोंका कितना ही समय व्यतीत हो गया तब किसी एक दिन कबूतर-कबूतरीका जोड़ा देखनेसे प्रभावतीको पूर्वभवका सम्बन्ध याद आ गया, वह विरक्त होकर शोकसे व्याकुल होती हुई अकेली बैठकर कुछ सोचने लगी ॥१६१-१६२।। इधर हिरण्यवर्माको भी जाति स्मरण हुआ था, उसने एक पटियेपर अपने पूर्वजन्मका सब हाल साफ साफ लिखकर प्रभावतीकी सखी प्रियकारिणीको दिया था. प्रभावती ने प्रियकारिणीके हाथमें वह पटिया देखकर कहा कि यह चित्रपट तुझे कहां मिला है ? सखीने कहा कि 'यह चित्रपट तेरे पतिने लिखा है और उनके नौकर सकान्तने मुझे दिया है, इस प्रकार सखीके वचन सुनकर प्रभावतीने भी एक पटियेपर अपने पूर्वजन्मका सब वृत्तान्त लिखकर सखी के हाथमें दिया ॥१६३-१६५॥ वह चित्रपट देखकर हिरण्यवर्मा प्रभावतीपर बहुत अनुराग करने लगा और प्रभावती भी हिरण्यवर्मापर बहुत अनुराग करने लगी, उन दोनोंका प्रेम पूर्व पर्यायके प्रेमसे कहीं दूना हो गया था ॥१६६।। कुटुम्बके सब लोगोंने मिलकर उन दोनोंका मंगलाभिषेक किया मानो वे उनका दूसरा कल्याण ही करना चाहते हों ।।१६७।। किसी समय दशमी के दिन ये दोनों सिद्धकूटके चैत्यालयमें अभिषेक पूजन आदि कर रहे थे उसी समय हिरण्य
१ स्वयंवरमिति घोषयित्वा तद्दिने व्यसर्जयदिति सम्बन्धः । २ भूमौ पातयति स्म । ३ मेरोस्त्रिः ल०। ४ संयोजयति स्म । ५ असहायैव । ६ प्रभावत्याः सख्याः । ७ हस्ते स्थितम् । ८ हिरण्यवर्मणः । । प्राग्भवम्, पुरातनमित्यर्थः । १० प्रभावती । ११ पुरातनी । १२ आ समन्ताद द्विगुणा । १३ विवाहदिनाद् दशमदिने । १४ अभिषेकपूजाविधौ। १५ प्रत्यक्षज्ञानम् । प्रत्यक्षज्ञानी ता० टि० । क्वचित् अ०, प०, स०, इ०, ल०।
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