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चत्वारिंशत्तम पर्व
३०७ शेषो विधिस्तु निःशेषः प्रागुक्तो नोच्यते पुनः। बहिर्यानक्रियामन्त्रः ततोऽयमनु गम्यताम् ॥१३४॥ बहिर्यानक्रियातत्रोपनयनिष्क्रान्तिभागी भव पदात्परम् । भवेद् वैवाहनिष्क्रान्तिभागी भव पदं ततः॥ १३॥ क्रमामुनीन्द्रनिष्क्रान्तिभागी भव पदं वदेत् । ततः सुरेन्द्रनिष्क्रान्तिभागी भव पदं स्मृतम् ॥१३६॥ मन्दराभिषेकनिष्क्रान्तिभागीभव पदं ततः। यौवराज्यमहाराज्यपदे भागी भवान्विते ॥१३७॥ निष्क्रान्तिपदमध्ये स्तां परराज्यपदं तथा । पार्हन्त्यराज्यनिष्क्रान्तिभागी भव शिखापदम् ॥१३॥ पवैरेभिरयं मन्त्रस्तद्विद्भिरनुजप्यताम् । प्रागुक्तो विधिरन्यस्तु निषद्यामन्त्र उत्तरः ॥१३॥
चूणिः-उपनयनिष्क्रान्तिभागी भव, वैवाहनिष्क्रातिभागी भव, मुनीन्द्रनिष्क्रान्तिभागी भव, सुरेन्द्रनिष्क्रान्तिभागी भव, मन्दराभिषेकनिष्क्रान्तिभागी भव, यौवराज्यनिष्कान्तिभागी भव, महाराज्यनिष्क्रान्तिभागी भव, परमराज्यनिष्कान्तिभागी भव, प्रार्हन्त्यनिष्क्रान्तिभागी भव, (बहिर्यानमन्त्रः)
निषद्यादियसिंहासनपदाद् भागी भव पदं भवेत् । एवं विजयपरमसिंहासनपदद्वयात् ॥१४०॥ नामोंका धारक हो और 'परमाष्टसहस्रनामभागी भव' (अत्यन्त उत्तम एक हजार आठ नामोंका पानेवाला हो) ये मन्त्र पढ़ना चाहिये।
संग्रह-'दिव्याष्टसहस्रनामभागी भव, विजयाष्टसहस्रनामभागी भव, परमाष्टसहस्रनामभागी भव' ॥१३२-१३३।। बाकीकी समस्त विधि पहले कही जा चुकी है इसलिये दुबारा नहीं कहते हैं अब आगे बहिर्यान क्रियाके मन्त्र नीचे लिखे अनुसार जानना चाहिये ॥१३४॥
सबसे पहले 'उपनयनिष्क्रान्तिभागी भव', (तू यज्ञोपवीतके लिये निकलनेवाला हो) यह पद बोलना चाहिये और फिर 'वैवाहनिष्क्रान्तिभागी भव' (विवाहके लिये बाहर निकलने वाला हो) यह मन्त्र पढ़ना चाहिये ॥१३५॥ तदनन्तर अनुक्रमसे 'मुनीन्द्रनिष्क्रान्तिभागी भव' (मुनिपदके लिये निकलनेवाला हो) यह मन्त्र कहना चाहिये और उसके बाद 'सुरेन्द्रनिष्क्रान्तिभागी भव' (सुरेन्द्र पदकी प्राप्तिके लिये निकलनेवाला हो) यह पद बोलना चाहिये ॥१३६।। तत्पश्चात् 'मन्दरेन्द्राभिषेकनिष्क्रान्तिभागी भव' (समेरुपर्वतपर अभिषेकके लिये निकलनेवाला हो) इस मन्त्रका उच्चारण करना चाहिये और फिर 'यौवराज्यनिष्क्रान्तिभागी भव' (युवराज पदके लिये निकलनेवाला हो) यह मन्त्र कहना चाहिये ॥१३७॥ तदनन्तर 'महाराज्यनिष्क्रान्तिभागी भव' (महाराज पदकी प्राप्तिके लिये निकलनेवाला हो) यह पद बोलना चाहिये और उसके बाद 'परमराज्यनिष्क्रान्तिभागी भव' (चक्रवर्तीका उत्कृष्ट राज्य पानेके लिये निकलनेवाला हो) यह मंत्र पढ़ना चाहिये और इसके अनन्तर 'आर्हन्त्यराज्यभागी भव' (अरहन्त पदकी प्राप्तिके लिये निकलनेवाला हो) यह मन्त्र कहना चाहिये ॥१३८॥ इस प्रकार मन्त्रोंको जाननेवाले द्विजोंको इन उपर्युक्त पदोंके द्वारा मंत्रोंका जाप करना चाहिये। बाकी समस्त विधि पहले कह चुके हैं अब आगे निषद्या मन्त्र कहते हैं ॥१३९॥
___ संग्रह-'उपनयनिष्क्रान्तिभागी भव, वैवाहनिष्क्रान्तिभागी भव, मुनीन्द्रनिष्क्रान्तिभागी भव, सुरेन्द्रनिष्क्रान्तिभागी भव, मन्दराभिषेकनिष्क्रान्तिभागी भव, यौवराज्यनिष्क्रान्तिभागी भव, महाराज्यनिष्क्रान्तिभागी भव, परमराज्यनिष्क्रान्तिभागी भव, आर्हन्त्यनिष्क्रान्तिभागी भव'।
निषद्यामन्त्र:-'दिव्यसिंहासनभागी भव' (दिव्य सिंहासनका भोक्ता हो-इन्द्रके १ ज्ञायताम् । २ स्याताम्। ३ अन्त्यपदम् ।
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