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चत्वारिंशत्तमं पर्व
तत्रादौ सत्यजाताय नमः पदमुदीरयेत् । वाच्यं ततोऽर्हज्जाताय नम इत्युत्तरं पदम् ॥६४॥ ततः परमजाताय नमः पदमुदाहरेत् । परमार्हतशब्दं च चतुर्थ्यन्तं नमः परम् ॥ ६५ ॥ ततः परमरूपाय नमः परमतेजसे । नम इत्युभयं वाच्यं पदमध्यात्मदशभिः ॥६६॥ परमादिगुणायेति पदं चान्यन्नमोबुतम् । परमस्थानशब्दश्च चतुथ्यन्तो नमोऽन्वितः ॥६७॥ उदाहार्य क्रमं ज्ञात्वा ततः परमयोगिने । नमः परमभाग्याय नम इत्युभयं पदम् ॥ ६८ ॥ परमद्विपदं चान्यच्च तुथ्यंन्तं नमः परम् । स्यात्परमप्रसादाय नम इत्युत्तरं पदम् ॥६६॥ स्यात्परमकाअक्षिताय नम इत्यत उत्तरम् । स्यात्परमविजयाय नमः इत्युत्तरं वचः ॥७०॥ स्यात्परमविज्ञानाय नमो वाक्तदनन्तरम् । स्यात्परमदर्शनाय नमः पदमतः परम् ॥७१॥ ततः परमवीर्याय पदं चास्मानमः परम् । परमादिसुखायेति पदमस्मादनन्तरम् ॥७२॥ सर्वज्ञाय नमोवाक्यमर्हते नम इत्यपि । नमो नमः पदं चास्मात्स्यात्परं परमेष्ठिने ॥७३॥ परमादिपदान्त्र इत्यस्माच्च नमो नमः । सम्यग्दृष्टिपदं चान्ते बोध्यन्तं द्विः प्रयुज्यताम् ॥७४॥ कहा है उसी प्रकार परमेष्ठियोंके उत्कृष्ट मन्त्र कहता हूँ || ६३ || उन परमेष्ठी मन्त्रोंमें सबसे पहले 'सत्यजाताय नमः' (सत्यरूप जन्म लेनेवालेके लिये नमस्कार हो ) यह पद बोलना चाहिये और उसके बाद 'अर्हज्जाताय नमः' (अरहन्तके योग्य जन्म लेनेवालेके लिये नमस्कार हो ) यह पद पढ़ना चाहिये || ६४ ॥ तदनन्तर 'परमजाताय नमः' (उत्कृष्ट जन्म लेनेवाले के लिये नमस्कार हो ) यह पद कहना चाहिये और इसके बाद चतुर्थी विभक्त्यन्त परमार्हत शब्दके आगे नमः पद लगाकर परमार्हताय नमः' (उत्कृष्ट जिनधर्मके धारकके लिये नमस्कार हो ) यह मन्त्र पढ़ना चाहिये ॥ ६५ ॥ तत्पश्चात् अध्यात्म शास्त्रको जाननेवाले द्विजोंको 'परमरूपाय नमः' (उत्कृष्ट निर्ग्रन्थरूपको धारण करनेवालेके लिये नमस्कार हो) और परमतेजसे नमः ( उत्तम तेजको धारण करनेवालेके लिये नमस्कार हो ) दो मन्त्र बोलना चाहिये ||६६ || फिर नमः शब्दके साथ परमगुणाय यह पद अर्थात् 'परमगुणाय नमः' (उत्कृष्ट गुण वालेके लिये नमस्कार हो ) यह मन्त्र बोलना चाहिये और उसके अनन्तर नमः शब्दसे सहित चतुर्थी विभक्त्यन्त परमस्थान शब्द अर्थात् 'परमस्थानाय नमः' (मोक्षरूप उत्तमस्थानवाले के लिये नमस्कार हो ) यह पद पढ़ना चाहिये ||६७ || इसके पश्चात् क्रमको जानकर 'परमयोगिने नमः' (परम योगी के लिये नमस्कार हो) और 'परमभाग्याय नमः' (उत्कृष्ट भाग्यशालीको नमस्कार हो ) ये दोनों पद बोलना चाहिये ॥ ६८ ।। तदनन्तर जिसके आगे नमः शब्द लगा हुआ है और चतुर्थी विभक्ति जिसके अन्तमें है ऐसा परमर्द्धि पद अर्थात् 'परमर्द्धये नमः' (उत्तम ऋद्धियोंके धारकके लिये नमस्कार हो) और 'परमप्रसादाय नमः' (उत्कृष्ट प्रसन्नताको धारण करनेवालेके लिये नमस्कार हो) ये दो मन्त्र पढ़ना चाहिये ॥ ६९ ॥ फिर 'परमकाक्षिताय नमः' (उत्कृष्ट आत्मानन्दकी इच्छा करनेवालेके लिये नमस्कार हो ) और परमविजयाय नमः ( कर्मरूप शत्रुओंपर उत्कृष्ट विजय पानेवालेके लिये नमस्कार हो ) ये दो मन्त्र बोलना चाहिये ॥७०॥ तदनन्तर 'परमविज्ञानाय नमः' (उत्कृष्ट ज्ञानवाले के लिये नमस्कार हो) और उसके बाद 'परमदर्शनाय नमः' (परम दर्शनके धारकके लिये नमस्कार हो ) यह पद पढ़ना चाहिये ॥ ७१ ॥ इसके पश्चात् 'परमवीर्याय नमः' (अनन्त बल शाली के लिये नमस्कार हो) और फिर परमसुखाय नमः' (परम सुखके धारकको नमस्कार हो ) ये मन्त्र कहना चाहिये ॥ ७२ ॥ इसके अनन्तर सर्वज्ञाय नमः ( संसारके समस्त पदार्थों को जाननेवालेके लिये नमस्कार हो ) 'अर्हते नमः' ( अरहन्तदेवके लिये नमस्कार हो), और फिर 'परमेष्ठिने नमो नमः' (परमेष्ठीके लिये बार बार नमस्कार हो ) ये मन्त्र बोलना चाहिये ॥७३॥ तदनन्तर 'परमनेत्रे नमो नमः' (उत्कृष्ट नेताके लिये नमस्कार हो ) यह मन्त्र
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