________________
२०४
महापुराणम् जलदष्टिनियुद्धेषु' योऽनयोर्जयमाप्स्यति । स जयश्रीविलासिन्याः पतिरस्तु स्वयंवृतः ॥४५॥ इत्युद्घोष्य कृतानन्दम् आनन्दिन्या गभीरया । भेर्या चमूप्रधानानां न्यधुरेकत्र सन्निधिम् ॥४६॥ नृपा भरतगृह्या ये तानेका न्यवेशयन् । ये बाहुबलिगृह्याश्च पार्थिवांस्तानतोऽन्यतः ॥४७॥ मध्ये महीभृतां तेषां रेजतुस्तौ नृपौ स्थितौ । गतौ निषधनीलाद्री कुतश्चिदिव सन्निधिम् ॥४८॥ "तयोर्भुजबली रेजे गरुडग्रावसच्छविः। जम्बूद्रम इवोत्तुङगः समृङगोऽशित मुद्धजः ॥४६॥ रराज राजराजोऽपि तिरीटोदनविग्रहः। सचलिक इवादीन्द्रः तप्तचामीकरच्छविः ॥५०॥ दघद्धीरतरां दृष्टि निनिमेषामनुद्भटाम् । इष्टियुद्ध जयं प्राप प्रसभं भजविक्रमी ॥५१॥ . विनिवार्य कृतक्षोभम् अनिवार्य बलार्णवम् । मर्यादया यवीयांसं जयेनायोजयन्नाः ॥५२॥ /सरसीजलमागाढौ० जलयुद्ध मदोद्धतौ। दिग्गजाविव तो दीर्धेः व्यात्युपक्षीमासतुर्भुजैः ॥५३॥ अधिवक्षस्तरं जिष्णो रेजरच्छा जलच्छटाः । शैलभर्तुरिवोत्सङगसगिन्यः सतयोम्भसाम् ॥५४॥
जलौघो भरतेशेन मुक्तो दोर्बलशालिनः । प्रांशोरप्राप्य दूरेण मुखमारात् समापतत् ॥५५॥ किया ॥४४॥ ‘इन दोनोंके बीच जल युद्ध, दृष्टि युद्ध और बाहु युद्ध में जो विजय प्राप्त करेगा वही विजय-लक्ष्मीका स्वयं स्वीकार किया हुआ पति हो, इस प्रकार सबको आनन्द देनेवाली गंभीर भेरियोंके द्वारा जिसमें सबको हर्ष हो इस रीतिसे घोषणा कर मंत्री लोगोंने सेनाके मुख्य मुख्य पूरुषोंको एक जगह इकट्ठा किया ।।४५-४६।। जो भरतके पक्षवाले राजा थे उन्हें एक ओर बैठाया और जो बाहुबलीके पक्ष के थे उन्हें दूसरी ओर बैठाया ।।४७।। उन सब राजाओं के बीच में बैठे हुए भरत और बाहुबली ऐसे सुशोभित हो रहे थे मानो किसी कारणसे निषध और नीलपर्वत ही पास पास आ गये हों ॥४८॥ उन दोनोंमें नीलमणिके समान सुन्दर छविको धारण करता हुआ और काले काले केशोंसे सुशोभित कुमार बाहुबली ऐसा जान पड़ता था मानो भमरोंसे सहित ऊँचा जम्बवक्ष ही हो ॥४९॥ इसी प्रकार मकुटसे जिसका शरीर ऊँचा हो रहा है और जो तपाये हुए सुवर्णके समान कान्तिको धारण करनेवाला है ऐसा राज-राजेश्वर भरत भी इस प्रकार सुशोभित हो रहा था मानो चूलिकासहित गिरिराजसुमेरु ही हो ।।५०।। अत्यन्त धीर तथा पलकोंके संचारसे रहित शान्त दृष्टिको धारण करते हुए कुमार बाहुबलीने दृष्टियुद्धमें बहुत शीघ्र विजय प्राप्त कर ली ।।५१।। हर्षरो क्षोभ मचाते हुए बाहुबलीके दुनिवार सेनारूपी समुद्रको रोककर राजाओंने बड़ी मर्यादाके साथ कुमार बाहुबलीको विजयसे युक्त किया अर्थात दृष्टियुद्धमें उनकी विजय स्वीकार की ॥५२।। तदनन्तर मदोन्मत्त दिग्गजोंके समान अभिमानसे उद्धत हुए वे दोनों भाई जलयुद्ध करने के लिये सरोवरके जलमें प्रविष्ट हुए और अपनी लम्बी लम्बी भुजाओंसे एक दूसरेपर पानी उछालन लग ।।५३।। चक्रवता भरतकं वक्षःस्थलपर बाहुबलोक द्वारा छोड़ी हुई जलको उज्ज्वल छ टाएं ऐसी सुशोभित हो रही थीं मानो सुमेरुपर्वतके मध्यभागमें जलका प्रवाह ही पड़ रहा हो ।।५४।। भरतेश्वर के द्वारा छोड़ा हुआ जलका प्रवाह अत्यन्त ऊँचे बाहुबलीके मुखको दूर छोड़कर दूरसे ही नीचे जा पड़ा ।। भावार्थ-भरतेश्वरने भी बाहुबलीके ऊपर पानी फेंका था परन्तु बाहबलीके ऊँचे होने के कारण वह पानी उनके मवतक नहीं पहँच सका, दरसे ही नीचे जा पड़ा । भरतका शरीर पाँचसौ धनुष ऊँचा था और बाहुबलीका पाँचसौ पच्चीस
१ जलयुद्धदृष्टियुद्धबाहुयुद्धेषु । 'नियुद्धं बाहुयुद्धे' इत्यभिधानात् । २ चक्रुः । ३ कारणात् । ४ सम्मेलनमित्यर्थः । ५ तयोर्मध्य। ६ नीलकेशः। 'शितः कृष्ण सिते भर्जे' इति विश्वलोचनः । ७ शान्ताम् । ८ शीघम् । ६ अनुजम् । 'जघन्यजे स्युः कनिष्टयवीयोऽवरजानुजाः' इत्यभिधानात् । १० प्रविष्टौ। ११ परस्पर जलसेचन चक्रतुः । १२ प्रवाहाः। १३ उन्नतस्य ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org