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पत्रिंशत्तमं पर्व
२०७
अत्यन्तरसिकानादौ पर्यन्ते प्राणहारिणः । कम्पाकपाकविषमान् विषयान् कः कृती भजेत् ॥७६॥ शस्त्रप्रहारदीप्ताग्निवजाशनि महोरगाः। न तथोद्वेजकाः पुंसां यथाऽमी विषयद्विषः ॥७७॥ महाब्धिरौद्रसङग्रामभीमारण्यसरिगिरीन् । भोगाथिनो भजन्त्यज्ञा धनलाभ धनायया ॥७८।। दीर्घदोर्धातनिर्घात नि?षविषमीकृते । यादसां यादसांपत्यौ चरन्ति विषयार्थिनः ॥७॥ समापतच्छरवातनिरुद्धगगनाङगणम् । रणाङगणं विशन्त्यस्तभियो भोगविलोभिताः ॥८॥ चरन्ति वनमानुष्या' यत्र सत्रासलोचनाः । ताः पर्यटन्त्यरण्यानीः भोगाशोपहता जडाः ॥१॥ सरितो विषमावर्तभोषणा ग्राहसकुलाः । 'तितीर्षन्ति बताविष्टा विषमविषयग्रहः ॥८२॥ प्रारोहन्ति दुरारोहान् गिरीनप्यभियोगिनः । रसायनरसज्ञान बलवादविमोहिताः ॥८३॥ अनिष्टवनितेवेयम् प्रालिङगति बलाज्जरा । कुर्वती पलितव्याजाद् रभसेन कचग्रहम् ॥८४॥ १३भोगेष्वत्युत्सुकः प्रायो न च वेद" हिताहितम् । भुक्तस्य जरसा जन्तोः मृतस्य च किमन्तरम् ॥८॥ र प्रसह्य पातयन् भूमौ गात्रेषु कृतवेपथुः । जरापातो८ नृणां कष्टो ज्वरः शीत इवोद्भवन् ॥८६॥
में कड़वे (दुःख देनेवाले) जान पड़ते हैं ऐसे विषयोंके लिये यह अज्ञ प्राणी क्या व्यर्थ ही अनेक दुःखोंको प्राप्त नहीं होता है ? ॥७५।। जो प्रारम्भ कालमें तो अत्यन्त आनन्द देनेवाले हैं और अन्तमे प्राणोंका अपहरण करते हैं ऐसे किपाक फल (विषफल) के समान विषम इन विषयों को कौन बुद्धिमान् पुरुष सेवन करेगा? ॥७६॥ ये विषयरूपी शत्रु प्राणियोंको जैसा उद्वेग करते हैं वैसा उद्वेग शस्त्रोंका प्रहार, प्रज्वलित अग्नि, वज, बिजली और बड़े बड़े सर्प भी नहीं कर सकते हैं ।।७७॥ भोगोंकी इच्छा करनेवाले मूर्ख पुरुष धन पानेकी इच्छासे बड़े बड़े समुद्र, प्रचण्ड युद्ध, भयंकर वन, नदी और पर्वतोंमें प्रवेश करते हैं ॥७८।। विषयोंकी चाह रखनेवाले पुरुष जलचर जीवोंकी लम्बी लम्बी भुजाओंके आघातसे उत्पन्न हुए वज्रपात जैसे कठोर शब्दोंसे क्षुब्ध हुए समुद्र में भी जाकर संचार करते हैं ॥७९॥ भोगोंसे लुभाये हुए पुरुष, चारों ओरसे पड़ते हुए वाणों के समूहसे जहां आकाशरूपी आंगन भर गया है ऐसे युद्धके मैदानमें भी निर्भय होकर प्रवेश कर जाते हैं।८०॥ जिनमें वनचर लोग भी भय सहित नेत्रोंसे संचार करते हैं ऐसे भयंकर बड़े-बड़े वनोम भी भोगोको आशासपीड़ित हुए मुखं मनुष्य घूमा करत ह ॥८॥ कितने दुःख की बात है कि विषयरूपी विषम ग्रहोंसे जकड़े हुए कितने ही लोग, ऊंची-नीची भंवरोंसे भयंकर और मगरमच्छोंसे भरी हुई नदियोंको भी पार करना चाहते हैं ।।८२।। रसायन तथा रस आदिक ज्ञानका उपदेश देनेवाले धर्तीके द्वारा मोहित होकर उद्योग करनेवाले कितने ही पुरुष कठिनाईसे चढने योग्य पर्वतोंपर भी चढ़ जाते हैं ।।८३॥ यह जरा सफेद बालोंके बहानेसे वेगपूर्वक केशोंको पकड़ती हुई अनिष्ट स्त्रीके समान जबर्दस्ती आलिंगन करती है ।।८४॥ जो प्राणी भोगोंमें अत्यन्त उत्कण्ठित हो रहा है वह हित और अहितको नहीं जानता तथा जिसे वृद्धावस्थाने घेर लिया है उसमें और मरे हुएमें क्या अन्तर है ? अर्थात् बेकार होनेसे वृद्ध मनुष्य भी मरे हुएके समान है ॥८५।। यह बुढापा भनुष्यको शीतज्वरके समान अनेक कष्ट देने वाला है क्योंकि जिस प्रकार शीतज्वर उत्पन्न होते ही जबर्दस्ती जमीन
१ अम्बीरपक्वफल । २ वज़रूपाशनि। ३ भयङकराः । ४ धनलाभवाञ्छया। ५ अशनि । ६ जलजन्तुनाम् । 'यादांसि जलजन्तवः' इत्यभिधानात् । यादसां पत्यौ समुद्र । 'रत्नाकरो जलनिधिर्याद:पतिरपां पतिः' इत्यभिधानात् । ७ वनेचराः । ८ भयसहिताः । ६ तरीतुमिच्छन्ति । १० ग्रस्ता इत्यर्थः । ११-प्यभियोगिनः ल०, प०, अ०, इ०। १२ पलितस्तम्भौषधसिद्धरसज्ञानाज्जातबलवादान्मोहिताः । १३ भोक्तु योग्यवस्तुषु । १४ न जानाति । १५ भेदः । १६ बलात्कारेण । १७ कम्पः । १८ प्राप्तिः ।
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