Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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आशीर्वचन
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साथ उन्होंने उपासक प्रतिभा की विशिष्ट साधना कर प्राथमिक स्कूल शुरू किया जो आज उच्चतर विद्यालय से इस युग में एक कीर्तिमान स्थापित किया है। उनका आगे बढ़कर महाविद्यालय तक की यात्रा कर चुका है। जीवन सादा है, श्रमशील है, सात्त्विक है। जीवन-विकास अब तक यहाँ हजारों विद्यार्थी अध्ययन कर चुके हैं। के इस अन्तर्मुखी अभियान के साथ-साथ उन्होंने एक उस शिक्षा केन्द्र का उद्देश्य विद्यार्जन के साथ-साथ अच्छे दूसरा अभियान भी चलाया जिसका लक्ष्य है-शिक्षा केन्द्र संस्कारों को अजित कराना है और अपने इस उद्देश्य में राणावास । वहाँ उन्होंने पाँच विद्यार्थियों से छोटा-सा वे एक सीमा तक सफल भी रहे हैं।
00 स्वाध्यायप्रिय श्रावक
D साध्वी श्री संघमित्रा केसरीमलजी सुराणा बहुमुखी व्यक्तित्व एवं कृतित्व सज्झायसज्झाणरयस्स ताइणो, के धनी हैं। वे धन के पक्के एवं कर्मठ समाजसेवी हैं । अपावभावस्स तवे रयस्स उनके प्रबल पुरुषार्थ ने अनेक सेवाएँ समाज को प्रदान
विसुज्झई जं सि मलं पुरेकडं, की हैं। विद्याभूमि राणावास में प्राथमिक शिक्षा से
समीरियं रुप्पमलं व जोइणा ॥ लेकर महाविद्यालय तक की शैक्षणिक प्रवृत्तियों को -जो साधक निरन्तर स्वाध्याय ध्यान में निरत रहता संचालित करने का श्रेय उनकी दृढ़ संकल्प शक्तियों का है वह कर्मावरण को हटाकर निर्मल चेतना का जागरण परिणाम है। उन्होंने ३५ वर्ष की अवस्था में समाज-सेवा करता है । के लिए अपने को समर्पित कर दिया था। यह समय केसरीमलजी सुराणा के जीवन में स्वाध्याय प्रवृत्ति वि० सं २००१ का था। एक ओर उनके जीवन में का गुण विशेष भाव से जागृत हुआ है। उन्हें सैकड़ों सामाजिक स्तर पर अनेक गुणों का विकास हआ। आध्यात्मिक पद्य कंठस्थ हैं। उनका पुनरावर्तन करते दूसरी ओर उनका जीवन अध्यात्म-साधना-सरिता में रहते हैं। सम्भवतः सहस्रों पद्यों की स्वाध्याय सामायिकभी विशेष भाव से रमण करता रहा है। वे प्रतिदिन लगभग साधना में उनके हो जाती है । १६ सामायिक करते हैं। वर्षों से वे ब्रह्मचर्य की साधना सत्साहित्य के पठन से उनकी साहित्य साधना महान् में रत हैं। सूर्यास्त के पश्चात् वे किसी प्रकार का अन्न- प्रेरक बनी हुई है। जल ग्रहण नहीं करते। दिन में भी भोजन करने का वे आधनिक व प्राचीन सभी प्रकार के सत्साहित्य समय मर्यादित है। संख्या की दृष्टि से भी वे अल्प द्रव्य का अध्ययन करने में रुचि रखते हैं। ग्रहण करते हैं।
सुराणाजी अवस्था से वृद्ध हैं पर उनमें युवक-सा जनदर्शन में स्वाध्याय साधना को अध्यात्म साधना उत्साह है। मैंने राणावास चातुर्मास में उनकी जीवनका विशिष्ट अंग माना है। बारह प्रकार की तपस्याओं चर्या को निकटता से पढ़ा, लगा-इतना कर्मशील व्यक्ति में स्वाध्याय अन्तरंग तप भी है । पुस्तकों का पठन मात्र ही सहस्रों में एक मिलता होगा। स्वाध्याय नहीं है। आत्मा के चिन्तन-मनन और निदि- कर्म-साधना व धर्म-साधना का समन्वित रूप सुराणाजी ध्यासन का नाम ही स्वाध्याय है ।
के व्यक्तित्व में है । अनेक प्रकार की प्रवृत्तियों में आगम ग्रन्थों में स्थान-स्थान पर स्वाध्याय प्रवृत्ति व्यस्त होते हुए भी उनकी स्वाध्यायप्रियता आज के युग को प्रबल समर्थन दिया गया है। दशवकालिक सूत्र में में श्रावक समाज के लिए विशेष प्रेरणासूत्र है । कहा है
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