Book Title: Jinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Priyashraddhanjanashreeji
Publisher: Priyashraddhanjanashreeji
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साहित्य के क्षेत्र में जिनभद्रगणि का विशेष योगदान रहा है । उसमें भी 'भाष्य' तो उनका अनुपम अवदान है। आगमिक - व्याख्या - साहित्य में 'भाष्य' विषय को समझने में अत्यधिक उपयोगी है। जैसा कि पूर्व में ज्ञातव्य है कि भाष्य मूल आगमों एवं उनकी नियुक्तियों इन दोनों पर लिखे गए हैं। निर्युक्ति पर आधारित विशेषावश्यकभाष्य भाष्यों में प्रमुख है। भाष्यकार जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण की कृतियों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार से है
1. विशेषावश्यकभाष्य
यह एक ऐसा सारगर्भित ग्रन्थ है, जिसमें समस्त जैन वाङ्मय में वर्णित सभी महत्त्वपूर्ण विषयों की सविस्तार चर्चा की गई है। प्रस्तुत ग्रन्थ में जैन-ज्ञानवाद, प्रमाण - शास्त्र, आचार- नीति, स्याद्वाद, नयवाद, कर्म - सिद्धान्त आदि सभी महत्त्वपूर्ण विषयों की चर्चा है । 19
इस ग्रन्थ की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें जैन- दर्शन के सिद्धान्तों का निरूपण जैन- दर्शन तक ही सीमित न होकर तत्सम्बन्धी अन्य दर्शनों की अवधारणाओं, मान्यताओं तथा मतभेदों के उल्लेख के साथ हुआ है। आचार्य जिनभद्रगणि का भाषीय वैदुष्य इतना गहन, सजीव तथा सटीक था कि आगमों से सम्बन्धित सभी प्रकार की मान्यताओं का तार्किक - विवरण इस ग्रन्थ में जितने सहज रूप से किया गया है, वैसा अन्यत्र मिलना बहुत ही दुर्लभ है। दूसरे, निर्युक्ति पर आधारित यह 'विशेषावश्यकभाष्य' भाष्यग्रन्थों में प्रमुख माना जाता है। स्वयं भाष्यकार ने इस समग्र ग्रन्थ को अनुयोगों का मूलभूत आधार कहा है। यह भाष्य आवश्यक निर्युक्ति के अन्तर्गत 'सामायिक' नामक प्रथम अध्ययन पर प्राकृत भाषा में पद्यबद्ध रूप में लिखा गया है । इसको
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(क) शिष्यहिताख्य बृहद्वृत्ति, मलधारी हेमचन्द्रटीका सहित, यशोविजयजी, जैन- ग्रन्थमाला, बनारस, वीर संवत् 2427-2441.
(ख) गुजराती अनुवाद, आगमोदय समिति, बम्बई, सन् 1924 - 1927.
(ग) विशेषावश्यक गाथा नामकारादिः क्रमः तथा विशेषावश्यकविषयाणामनुक्रमः आगमोदय समिति, बम्बई, सन् 1923.
(घ) स्वोपज्ञ वृत्तिसहित, प्रथम भाग, लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर
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अहमदाबाद, सन् 1966.
(ये सभी प्रमाण जैनसाहित्य का बृहद् इतिहास, भाग - 3 से उद्धृत है)
विशेषावश्यकभाष्य, गाथा - 3603.
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