Book Title: Jinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Priyashraddhanjanashreeji
Publisher: Priyashraddhanjanashreeji
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व्यवहारभाष्य का और एक बृहत्कल्पभाष्य का प्रणेता होना चाहिए, किन्तु उनके नाम के सन्दर्भ में कोई चर्चा नहीं की गई है।
उत्तराध्ययन, दशवैकालिकसूत्र, पिण्डनियुक्ति और ओघनिर्यक्ति पर जो भाष्य मिले, उनके कर्ता अज्ञात हैं।
प्रथम तीन भाष्यों की गाथा-संख्या-प्रमाण बहुत ही अल्प है। उत्तराध्ययन, दशवैकालिकसूत्र और पिण्डनियुक्तिभाष्य की गाथा क्रमशः पैंतालीस, तिरसठ, व छियालीस हैं। ये लघुकायिक होने से इन्हें कंठस्थ किया जा सकता था। ओघनियुक्ति पर दो भाष्य मिले हैं - 1. लघुभाष्य और 2. बृहद्भाष्य ।
ओघनियुक्ति
लघुभाष्य बृहद्भाष्य
गाथा परिमाण (332) गाथा परिमाण (2517)
व्यवहारभाष्य दस उद्देशकों में विभाजित है। इस भाष्य के अन्तर्गत आलोचना, प्रायश्चित्त, गच्छ, पदवी और विहारादि के विषयों का उल्लेख है, साथ ही विभिन्न प्रकार से प्रायश्चित्त का विधान भी है। निशीथ-भाष्य में जैन आचारसंहिता का एवं प्रायश्चित्त का सविस्तार वर्णन है। इन दोनों की विषयवस्तु अत्यन्त उपयोगी है। बृहत्कल्पभाष्य तथा पंचकल्पभाष्य के प्रणेता जिनभद्रदासगणि हैं। बृहत्कल्पभाष्य दो भागों में विभाजित है- लघुभाष्य एवं बृहत्भाष्य । बृहत्कल्पभाष्य अनुपलब्ध है तथा लघुभाष्य में जैन-श्रमणों की आचार-चर्या का वर्णन है। यह छ: उद्देशकों में विभक्त है। इसकी गाथा-संख्या 6490 है। बृहत् सांस्कृतिक-सामग्री भी इसमें निहित है। पंचकल्पभाष्य में 2574 गाथाएं
प्रस्तुत सदभ जैनधर्म के 'प्रभावक आचार्य' नामक किताब से लिया गया है, पृ. 419. 47 प्रस्तुत संदर्भ जैनधर्म के प्रभावक आचार्य' नामक किताब से लिया गया है, पृ. 419.
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