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अवलोचना-अवाप्य अवलोचना*-स० क्रि० निवारण करना; दूर करना। अवस्कंदक-पु० [सं०] वह जो लोगोंको अकारण, राह अवलोप-पु० [सं०] काटकर अलग करना; नष्ट करना; चलते मारे-पीटे, गुंडा। दाँत काटना; चूमना।
अवस्त्र-वि० [सं०] वस्त्रहीन, नग्न । अवश-वि० [सं०] बे-बस, लाचार; इंद्रियोंका दास; जो अवस्था-स्त्री० [सं०] हालत, दशा; देहादिकी कालकृत दूसरेके वशमें न हो; निरंकुश ।
अवस्था-लड़कपन, जवानी, बुढ़ापा आदिः उम्र; स्थिति अवशप्त-वि० [सं०] अभिशप्त, जिसे शाप दिया गया हो। स्थिरता; आकृति; भग । -चतुष्टय-पु० जीवनकी चार अवशिष्ट-वि० [सं०] बचा हुआ, बाकी, फाजिल। अवस्थाएँ-बाल्य, कौमार, यौवन और वार्धक्य । -य-शक्तियाँ-स्त्री० ( रेसीडुअरी पावर्स ) किसी संविधान | पु० जीवात्मा या चित्तकी तीन अवस्थाएँ-जागति, स्वप्न, आदिमें जिन शक्तियों या अधिकारोंकी स्पष्ट रूपसे व्याख्या सुषुप्ति । -दशक-पु० प्रेमीकी दस अवस्थाएँ -अभिलाष; या चर्चा कर दी गयी हो, उनके पाद बची हुई अन्य सब चिंता, स्मृति, गुणकथन, उद्वेग, संलाप, उन्माद, व्याधि, शक्तियाँ या अधिकार ।
जड़ता और मरण । -द्वय-पु० जीवनकी दो अवस्थाएँअवशीर्ष-वि० [सं०] जिसका सिर झुका हो। पु० एक सुख और दुःख । नेत्ररोग।
अवस्थान-पु० [सं०] ठहरना; रहना; रहने, ठहरनेका अवशेष-पु०[सं०] वह जो बच रहे या बाकी रहे; समाप्ति । स्थान, धर; (स्टेशन) यात्रा-मार्ग तय करते समय रेलगाड़ी, वि० बचा हुआ; समाप्त ।
बस आदिके बीच-बीच में कुछ समयतक रुकनेकी जगह अवशेषित-वि० [सं०] दे० 'अवशिष्ट' ।
जहाँ यात्रियों या मालके चढ़ने-चढ़ानेकी व्यवस्था हो; वह अवश्यंभावी (विन्)-वि० [सं०] अटल, जिसका होना स्थान जहाँ सैनिक या पुलिसके आदमी रक्षा आदिकी निश्चित हो।
व्यवस्थाके लिए रखे गये हों या रहते हों; (स्टेज) दे० अवश्य-वि०[सं०] जो वश में न किया जा सके अनिवार्य । 'प्रक्रम'; मौका; अवस्थितिकी विशेष परिस्थिति; ठहरनेका अ० जरूर, निश्चय ।
काल। अवश्यमेव-अ० [सं०] निस्संदेह, यकीनन् ।
अवस्थापन-पु० [सं०] रखना; बिठाना; स्थापित करना। अवस*-अ० दे० 'अवश्य' । वि० लाचार ।
अवस्थित-वि० [सं०] ठहरा हुआ,टिका हुआमौजूद खड़ा । अवसन्न-वि० [सं०] सुस्त, बे-दम; उदास, खिन्न; अपना | अवस्थिति-स्त्री० [सं०] अवस्थान । कार्य करने में असमर्थ नाशोन्मुख ।
| अवहार-पु० [सं०] अपहरण; लौटाना; रणविराम; अवसर-पु० [सं०] मीकासुयोग; अवकाश अर्थालंकारका (रिबेट) प्राप्य धन (महसूल आदि) का विशेष स्थितिमें कुछ एक भेद । -ग्रहण-पु० (रिटायरमेंट) दे० 'अवकाश- अंश छोड़ दिया जाना, छुट । .. ग्रहण'। -प्राप्त-वि० (रिटायर्ड) नौकरीकी अवधि या अवहित्थ-पु०, अवहित्था-स्त्री० [सं०] एक संचारी सेवाकाल समाप्त हो जानेपर कार्यसे पृथक होनेवाला, भाव जिसमें लज्जा, भय आदि छिपानेका प्रयत्न होता है; जिसने नौकरी आदिसे अवकाश ग्रहण कर लिया हो। भावगोपन । -वाद-पु० (अपॉरच्यूनिज्म) प्रत्येक सुअवसरसे लाभ अवहेलना, अवहेला-स्त्री०[सं०] अनादर, अवशा; उपेक्षा। ठानेकी प्रवृत्ति यानीति ।-वादी-वि० (अपारच्यूनिस्ट) अवहेलित-वि० [सं०] अवज्ञात; तिरस्कृत । जो किसी स्थिर नीतिपर दृढ़ न रहकर प्रत्येक उपयुक्त अवाँ-पु० दे० 'आवाँ'। अवसरसे पूरा-पूरा लाभ उठानेका प्रयत्न करे।
अवांछनीय-वि० [सं०] जिसकी चाहना न की जाय, अवसर्ग-पु० [सं०] मुक्त करना; ढीला करना, दंड आदि अनभिलषणीय; अप्रिय । में कमी कर देना रोक न लगाना।
अवांतर-वि० [सं०] बीचमें स्थित, मध्यवती: अंतर्गत अवसर्पण-पु० [सं०] नीचे उतरना, अधोगमन । गौण । -दिशा-स्त्री० विदिशा, दो दिशाओंके बीचका अवसाद-पु० [सं०] सुस्ती, शिथिलता थकावट; उदासी नाश; अंत; हार (कानून)।
| अवाई-स्त्री० आगमन; गहरी जोताई । भवसान-पु० [सं०] विराम समाप्ति; मृत्यु हद्द ।
च)-वि० [सं०] मीन,चुप; स्तब्ध । पु० ब्रह्म। भवसि*-अ० अवश्य ।
-श्रुति-वि० गूंगा और बहरा । अवसित-वि० [सं०] समाप्त; गत; ज्ञात; परिपक्क निश्चित: | अवागी*-वि० मौन। माँड़ा हुआ (अनाज); संबद्ध अ-वसित-न बसा हुआ। अवाङमुख-वि० [सं०] अधोमुख, जिसका मुख नीचेकी अवसेख*-पु० दे० 'अवशेष'।
ओर हो; लज्जित । अवसेचन-पु० [सं०] सींचना छिड़कना सींचने इत्यादिके अवाच्य-वि० [सं०] न कहने योग्य; बात करनेके अयोग्य काममें आनेवाला पानी पसीना निकलना पसीना निका- अस्पष्ट; दक्षिणी । पु० अपशब्द न कहने योग्य बात । लनेकी क्रिया; जोंक, फस्द आदिके जरिये रक्त निकालना। अवाज*-स्त्री० दे० 'आवाज' । अपसेर*-स्त्री० देर; उलझन; केश-'गाइनके अवसेर अवाजी*-वि० आवाज करनेवाला । मिटावहु' सू० चिंता; व्याकुलता।।
अवाप्ति-स्त्री० [सं०] प्राप्ति । अवसेरना*-स० क्रि० कष्ट देना, परेशान करना। अवाप्य-वि० [सं०] प्राप्त करने योग्य न काटने योग्य अवसेषित-वि० दे० 'अवशिष्ट ।
(केशादि)।
अब
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