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( २२ २३ ) क्षायोपशमिकलब्धि ५दानान्तराय आदि के क्षयोपशम से क्षायोपशमिक दान आदि ५ लब्धि होते हैं । इनका वर्णन हो चुका है ।
चौतीस स्थान दर्शन
(२७) क्षायोपशमिक वेदक सम्यक्त्वइसका वर्णन हो चुका हैं ।
( २८ ) क्षायोपशमिक चारित्र या सराय संघम-अप्रत्याख्यानावरण ४ व प्रत्याख्यावरण ४ इन आठ प्रकृतियों के क्षयोपशमने महाव्रतादिरूप चारित्र होता है उसे क्षायोपशमिक ( सराग ) चारित्र कहते हैं ।
(२९) वेश संयम ( संयमासंयम ) - इस का वर्णन हो चुका हैं ।
४. औदयिक भाव २१ होते है
औदयिक भाव - अपनी उत्पत्ति के निमित्तभूत कमों के उदय से जो भाव प्रगट हां उन्हें औयिक भाव कहते हैं ।
(३० से ३३ ) गति ४- इनका वर्णन गतिमार्गणा में हो चुका हैं ।
(३४, ३५, ३६ ) लिंग ३- इनका वर्णन हो चुका हैं।
(३७ से ४० ) कषाय ४ - इनका वर्णन हो चुका है।
(४१ से ४६ ) लेश्या ६ - इनका वर्णन लेश्या मागंणा में हो चुका हैं ।
(४७) मिथ्यादर्शन - इसका सम्यक्त्व मार्गणा में बताया गया है ।
( ४८ ) असंयम - इसका मार्गणा में हो चुका हैं ।
स्वरूप
वर्णन संयम
(४९) अज्ञान - ज्ञानावरण कर्म के उदय से जो ज्ञान का अभावरूप भाव है उसे अज्ञान भाव कहते है यह अज्ञान औदयिक हैं ।
(५०) असिद्धत्व - जब तक आठ कर्मों का अभाव नहीं होता, तब तक असिद्धत्व भाव हैं ।
५. पारिणामिक भाव ३ है
पारिणामिक भाव - जो फर्मों के उदय, उपशम, क्षय, क्षयोपशम की अपेक्षा के बिना होवे वह पारिणामिक भाव है, ये ३ होते हैं ।
(५१) जीवत्व भाव - जिस से जीवे वह जीवत्व है । वह दो प्रकार का है । १ ला ज्ञान दर्शनरूप और २ रा दशप्राणरूप, इनमें ज्ञानदर्शनरूप जीवत्व शुद्ध पारिणामिक भाव है । और प्राणरूप जीवत्व अशुद्ध पारिणामिक भाव हैं ।
(५२) भव्यत्व- इसका वर्णन भव्यत्व मार्गणा में हो चुका हैं ।
(२३)
(५३) अभव्यत्व - इसका वर्णन भव्यत्व गण में हो चुका हैं।
२४. अवगाहना
जिन जीवों के देह है उनके देह प्रमाण तथा देह रहित ( सिद्ध) जीवों के जितने शरीर से मोक्ष गये है, उतने प्रमाण अवगाहना का वर्णन करना इस स्थान का प्रयोजन हैं । २५ बंध प्रकृतियां - १२० होते है । २६ उदय
-१२२ - १४८
२७ सत्व
२८ संख्या
२९ क्षेत्र३० स्पर्शन
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इनका वर्णन कोष्टकों में देखो ।
३१ काल
३२ अन्तर (विरहकाल ) -
३३ जाति (योनि) - ८४ लाख है ।
३४ कुल-१९९।। लाख कोटि कुल है । इन सब का वर्णन उत्तर भेदों की नामावली में किया है। वहां देखो ।