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पल्याणकरवपना प्राप्त हो सकताई तथापि विनयविजयजीने राज्याभिषेककी तरह नक्षाकी गिनतीके बहाने गर्मापहारके छठे कल्याणकको निषथ करनेका परिश्रम किया सो तो गच्छकदाग्रहके मिथ्यात्वको बढ़ाकर बालजीवको उसीके भ्रममें गेरनेके सिवाय और क्या लाभ उठाया होगा सोन्याय दृष्टिवाले विवेकी पाठकगण स्वयं विचार ठेवेंगे।
और पांचवां यह है कि-श्री आदिनाथ स्वामीका तो युगलाधर्म निवारण रूप भारतमें प्रथम राज्याभिषेक उसी नक्षत्र में होनेसे तथा राज्यव्यवहारके प्रगङ्गसे नक्षत्रका नाम मात्रही गिनाया है और श्रीकल्प सूत्रके 'घउ उत्तरासाढ़े अभीह पंच, इस पाठसे श्रीआदिनाथ स्वामीके पांच कल्याणकों की व्याख्या भी प्रगटपने है तैसेही 'चर हत्युत्तरे साईणा पंचम' ऐसा पाठसे श्रीवीरमभुके चरित्राधिकारे पांच कल्याणकोंकी व्याख्या किसी भी शाखमें नहीं है किन्तु 'पंच हत्युत्तरे सारणा परि निब डे' इस तरहके पाठसे उ कल्याणक तो अनेक शास्त्रों में प्रगटपने कहे हैं इसलिये राज्याभिषेकके नक्षत्रका नाम ले करके श्रीवीरमभुके छ कल्याणकोंका निषेध विनयविजयजीने किया सोतो गच्छ ममत्वके भाग्रहका कारसके सिवाय और क्या होगा सो विवेकी सजन स्वयं विचार ठेवेंगे:--
और अब छठा यह है कि-श्रीस्थानांगली सूत्रमें जिन भगवानोंके जिस जिस एक नक्षत्र में पांच पांच कल्याणक हुए थे उन्ही भगवानों में श्रीपद्मप्रमुजी मादि १४ तीर्थंकर महाराजोंके नाम सथानक्षत्रपूर्वक पांचपांचकल्याणकोंकी गिनती दिखाई है वहां जैसे श्रीवीरप्रभुके गर्भापहारकी गिनती Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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