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मारापन हो सकता है इसलिये भी राज्याभिषेकके बहाने गर्भापहारका छठा कल्याणक निषेध नहीं हो सकता है
और तीसरा यह है कि-राज्याभिषेक तो श्रीअजितनाथ स्वामी आदि बहुत तीर्थ कर महाराजोंका हुआ है इसलिये जो राज्याभिषेकको कल्याणकत्वपना प्राप्त हो सकता तो शास्त्रकार महाराज लिखने में कदापि विलन्ब नहीं करते और गर्भापहारको तो श्रीसमवायांगजी सूत्र वृत्तिके अनुसार पूर्वभवों की गिनतीसे तथा त्रिशला माताने चौदह खप्न देखे और शास्त्रकारोंने भी स्वप्नोंके अर्थ तथा फल वगैरहका वहांहो वर्णन किया है तथा देवताओं नेऋद्धि समृद्धिकी भी वृद्धि करी इत्यादि कारणों से उसीको तौ दूसरा च्यवन रूप कल्याणकत्वपना प्रगटपने प्राप्त होता है इसलिये सर्व जगह शास्त्र कारोंने श्रीवीर प्रभुके गर्मापहार पूर्वक छ कल्याणकोंकी व्याख्या लिखने में किसी जगह भी प्रमाद नहीं किया है जिससे राज्याभिषेकके सहारे गर्मापहारको कल्याणकत्व पनेसे विनयविजयजीने निषेध किया सो अज्ञानतासे या अभिनिवेशिक मिथ्यात्वसे उत्सूत्र भाषणही मालूम होता है
और चौथा यह है कि राज्याभिषेक तथा राज्य व्यवहार संसारिक कार्य होनेसे और उसीकी भावना भी संसारिक.कार्यो की होनेसे इसीको कल्याणकत्वपना प्राप्त नहीं हो सकता है परन्तु गर्भापहार तथा अनन्तबल्ली घरम तीर्थंकर मोक्ष सार्थवाहीका भी गर्भापहार व्यवहार अत्मार्थी भव्य जीवोंको कुलमद हटानेवाला और उसीकी भावना भी मिर्जराकी हेतु होनेसे उसीको तो प्रगटपने
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