________________
[७६० ] शासन प्रभावक परमोपकारी महाराजको प्रत्यक्ष झूठी निन्दा करके पापसे दुर्लभ बोधिपनेका और संसार भ्रमण करनेका हेतु करके भोले जीवोंको मिथ्यात्व गेरनेके कारण करते हैं क्योंकि कालानुभावसे अनियमित अकालसे अकस्मात ऋतुमाव के दूषणसे पूर्वोक्तादि भनेक बातोंकी हानि न होनेके लिये तरुण स्त्री मूलनायकको अङ्ग पूजा न करे और कुमारि बद्ध कर सकती हैं यह आचरण इन महाराजके पहिले पूर्वाचार्योका है और यद्यपि चौबीश (२४) ही तीर्य कर महाराजकी प्रतिमा पूज्यभावमें तो सभी बरोबर है। परन्तु राज्यगद्दीकी तरह मन्दिर तथा अधिष्ठायक मूलनायकके नामसे होते हैं उसके चमत्कार प्रभावसे जैन शासनको विशेष उन्नति होती है इसलिये यदि पूजा करनेके समय अकालसे अकस्मात् ऋतुभाव हो जाबे तो मूलनायकका तेज कांति प्रभाव हट जावे अव्यबस्थीत प्रतिमाजीहो जाति है तथा महा मलीन अशुद्धताकी बडीमाशातनासे अधिष्ठायक कोपसे आशातना करनेवाली को तो जो शिक्षा मिले सो मिलेही परन्तु शासनको प्रभावना उन्नति होनेने बाधा पहुचे बड़ीभारी हानि होवे और संघभी रोगमारी जन हानि दलिद्रता वगैरह भयङ्कर उपद्रव होनेका भय रहता है यह बातें तो वर्तमानमें बहुत जगह बनी हुई है उसके प्रत्यक्ष बहुत दृष्टान्त है इसलिये लाभके बदले विशेष हानिके कारण इस प्रवृत्तिको पूर्वाचार्यो ने नियत करो है परन्तु जिस स्त्रीके अङ्गपूजा ही करनेका विशेष भाव होवे तो वो अपने शरीरकी व्यवस्था देखकर पूरण उपयोग युक्त पवित्रतासे मीपञ्चतीर्थको नवपदजीका तथा मूडनायकके विना आजुवाजुकी अन्य प्रतिमाजीकी अङ्ग पूजा करके अपनी भावना पूरण कर लेवें उसमें कदाचित् अकस्मातसे माशातना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com