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का सहारा लेना यह गच्छ कदाग्रहका हठवादके सिवाय और क्या होगा इसको पाठक गण स्वयं विचार सकते हैं।
और भगवान्के च्यवन कल्याणकर्ने इन्द्रका आसन चलायमान होनेसे अवधिसे भगवान्को देखकर नमस्कार करें और आकर माताको १४ महास्वप्नोंका तीर्थंकर पुत्र होने रूप फल कह अपने स्थानपर पोछा देव लोकमें चला जावे ऐसा तो मावश्यक वृत्तिमें आदीश्वर भगवान्के चरित्रसे तथा त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र वगैरह शास्त्रोंसे सिद्ध होता है सो भी किसी तीर्थकरके च्यवनमें आवे किसीके नहीं भी भावे।।
इस बातका मीयत नियम नहीं है और कल्पसूत्रने तथा उनकी सब व्याख्याओंमें तो भगवान्को नमस्कार याने नमोत्युणं, करके पूर्व दिशाका अपना सिंहासन पर बैठ गया ऐसा खुलासा लिखा है और भी जीवाभिगम सूत्रमें नन्दीश्वर द्वीपाघिकारे मीचे मुजब पाठ है यथा___ "तस्थणं वहवे भवणवह वाणमंतरा जोयसिय वेमाणिया देवा चउमासिय पडिवएसु संवछरिएसुय अण्णेसुय बहुसु जिण जम्म निरकमण णाणुवाय परिणिवाण माइसु देवकज्जे सुय देव समुदाये मुय देव समवाए सुय देव पवयणे सुय एगंत तोस हिया समुवमया समाणाय मुदित पकालिया अहाहियाओ महिमामो कारे माणा पाले माणे मुहं सुहेणं विहरन्ति" । - इस पाठके अनुसार भी तीर्थकर महाराजोंके जन्म दीक्षा ज्ञानोत्पत्ति निर्वाण इन कल्याणकों में नन्दीश्वर द्वीपर्ने शाश्वत चैत्यों में भगवान्की प्रतिमाके आगे देव देवी इन्द्रादि मिलकर मठाईउछवकरते हैं ऐसा खुलासा लिखा है परन्तु च्यवन कल्याणक, ६४ इन्द्रादि मिलकर नन्दीश्वर द्वीपमें अठाई उच्छव करते
ऐसा नियत नियमका कोई भी शास्त्र प्रमाण मेरे देखने नहीं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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