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[२३] इस ग्रन्थ मीवीर प्रभुके छ कल्याणकोंका निर्णय अच्छी तरहसे करने में भाया है जिसको बांधकर गच्छ पक्षपातका दृष्टिराग न रखकर जिनाजा आराधन करनेके लिये सत्य बातको ग्रहण करना और शास्त्रोक्त सत्य बातका उपदेश करके भव्य जीवोंको शुद्ध सम्यक्तकी प्राप्तिके लाभका कारण मारमार्थी परोपकारी सज्जनोंको करना चाहिये और भवभोरुओंको जिमातापूर्वक सत्य ग्रहण करके निजपरके आत्मकल्याण के काय्यको प्रति वर्ताव करना परम उचित इस संसार परिभूमणमें मनुष्य भव जैन धर्मके आराधनका योग मिलमा अब कठिन है जिस पर भी गच्छ के पक्षपातादि तुच्छ कारणोंसे जिनाजाकी विराधना करके खोटे उपदेशसे मिजपरके संसारका कारण करना सर्वथा अनुचित है इसलिये गझरीह प्रबाहकी तरह मन्धपरम्पराकी कल्पित सूढीको छोड़कर सत्य ग्रहण करने भारमार्थियोंको बिलम्ब नहीं करना चाहिये और सत्य बात जानने पर भी अभिनिवेशिक मिथ्यात्वसे यह लोककी पूजा मानताकै गमिमानसे वालजीवों के दृष्टिरागमें पड़कर भोले जीवोंको अपने पक्ष खीचनेके लिये जिनामा विरुद्ध होकर कुयुक्तियोंसे उत्सूत्र भाषण मी नहीं करना चाहिये मरिची जमालिके दष्टान्तोंको याद करके संसार भ्रमण गर्भावास नरकादि दुसरोंसे भयरखके अपने गुरुजनोंका भी पक्षपात छोड़कर इन्द्र भूविकी तरह और जमालिके शिष्यों की तरह सत्य अङ्गिकार करना चाहिये विवेकी आत्मार्थी सज्जनोंको विशेष लिखनेकी जरूरत नहीं है
और विनय विनमजीने "लोक प्रकाश" नामा अन्य २६ वें सर्ग २४ तीर्थंकर महाराजांच्यवन जन्मादि पांच पांच कल्याणकोंके मास पक्ष दिन. नक्षत्र दिखाये उसने २४ वीर प्रभुके संबन्धने जो लिखा है .सो यहां पर दिखाताई छपा
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