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राजाकी सभानें चैत्यवासियोंको पराजय करके सुविहित ( खरतर विरुद प्राप्त किया ) जिन्होंके शिष्य संवेगरङ्गसे रङ्गित आत्मावाले तथा चन्द्र की तरह शीतलता युक्त १५०० प्रमाणे संवेगरङ्गशालाग्रन्थ के कर्ता भो जिनचन्द्रसूरिजी हुए ॥ ७ ॥ और जगत जीवोंको अभय दान देने में बड़े उत्साही तथा अल्पक्षोंके परम उपकारी नवांगी वृत्ति करने वाले और जयति शुअण स्त्रोत्रसे मीस्थंभन पार्श्वनाथजीकी प्राचीन प्रतिमा को प्रगट करके शरीरका रोग शान्त करने वाले श्री अभयदेव सूरिजी महाराज बड़े प्रभावक हुए ॥ ८ ॥ श्रीनवङ्गी वृत्ति कारक श्री अभयदेव सूरिजी के पट्ट पर भास्कर समान और गच्छकदाग्रहियों की अभिमान रूपी पर्वतको तोड़ने में बज्जके समान तथा सर्वशास्त्र विशारद संघ पट्टक धर्मशिक्षादि अनेक ग्रन्थ कर्त्ता और जिनको जिनाचा अतोब वल्लभ है ऐसे श्रीजिन वल्लभसूरिजी के पटपर जिन्होंके हजारों देव देवी तथा अनेक राजा सेवा करते हैं और एक लाख तीसहजार नवीन जैनो भावकों के कुल बनाकर ओसवाल वंशरूपी कल्पवृक्षको वृद्धिगत करने वाले और हजारों साधु साध्वियों के समुदाय के नायक, लाखों जीवोंके बोधि वीजको देने वाले महान् जैनशासन प्रभावक भोजिनदत्तसूरिजी महाराज हुए जिन्होंके चरण कमलोंकी पूजा सेवा सब देशों में होती है ॥ १० ॥ प्रीजिनदत्त सूरिजी महाराजके पह परम्परामें अनुक्रमें प्रोजिन चन्द्रसूरि जी जिनपति सूरिजी वगैरह यावत् श्रोजिनभक्ति सूरिजी पर्यंत वीर शासन प्रभावक अनेक आचार्य महाराज होते भये ॥ ११ ॥ श्रीजिन भक्ति सूरिजी महाराजके शिष्य परम्पराने अनुक्रमें अपने आत्मोद्धारकर्ते परमप्रीतिवाले मोमोतिसागरजी हुए तथा भव्य जीवोंको अमृत समान धर्मोपदेश देने में बड़े चतुर ऐसे
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