Book Title: Ath Shatkalyanak Nirnay
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 378
________________ ( ८२९ ) मी अमृत धर्मजी हुए और समादि दश प्रकारका यति धर्म माराधम करने में बड़े तत्पर प्रश्नोत्तर सार्द्धशतक आत्म प्रबोध चैत्य बन्दन साधु भावक विधि प्रकाश वगैरह अनेक ग्रन्थ करने वाले मोक्षमा कल्याणजी गणि हुए यह तीनों महाराज महोपा. ध्याय पद धारक थे ॥१२॥ मोक्षमाकल्याणजी गणि महाराजको परम्परामें सत्योपदेश करने में मानों मुमतिके सागर मेरे परमोपकारी धर्माचार्य श्रीमान्सुमतिसागरजी गणि उपाध्याय अभी वर्तमानमें विद्यमान हैं॥ १३ ॥ जिनके प्रथम बड़े शिष्य अपने आत्म कल्याण करने वाले क्षमा तपादि गुणों को कीर्तको जगतने फैलानेवाले भीकीर्तिसागरजी हुए थे सो सं० १९५१ में स्वर्गवास को शोभा करने को वहां चले गये ॥ १४ ॥ और दूसरा लघु शिष्य मै) मणि सागरने गुरु कृपासे श्रीपर्युषण निर्णय नाम: यह ग्रन्थ उ० मीजयचन्द्रजी गणिकी सहायतासे तथा कलकत्ता, मारवाड़, बम्बई बगैरह संघके आग्रहसे कलकत्ताने शुरू किया था सो भी बम्बई बार लालबाग, संबत् १९१४ के चौमासा आश्विन पुदी अष्टमी बुधवार को सम्पूर्ण किया है ॥१५॥ ौर मारवाइके तथा पूर्वके श्री संधने इस ग्रन्थको यन्त्र द्वारा मुद्रित करवाके वर्तमानिक गच्छ भेदोंकी भिन्न प्ररूपणासे भोले जीवोंके मिथ्यात्वक भ्रमको निवारण करके शुद्धद्धा रूपी सम्यक्त की भव्य जीवों को प्राप्ति होने के लिये और हठ बादियोंका झूठा भाग्रह दूर करके मोमिनाजानुसार सत्य बातोंका प्रकाश जगतने होनेके लिये प्रगट किया है ॥ १६ ॥ पंचांगीके प्रमाणों पूर्वक पूर्वाधार्योके कपनानुसार इस ग्रन्धकी रचना मैंने करी है जिसने कोई बात जिमाता विरुद्ध लिखी गई होवे तो उसका त्रिकरण शुद्धिसे तीन योग सहित भरिहंतादि छ शाक्षियोंसे मिच्छामि दुक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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