Book Title: Ath Shatkalyanak Nirnay
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 379
________________ ( ८३० ) देता हूं ॥ १७ ॥ तथा इस ग्रन्थ संबन्धी भूलोंको जो पाठकगण मेरेको बतलायेंगे या पत्र द्वारा सूचना करेंगे तो उन्होंका उपकार पूर्वक उसका सुधार करने की (मैं) प्रतिज्ञा करता हूं ॥ १८ ॥ और जिनाचा विरुद्ध उत्सूत्र प्ररूपण करने वालोंको तथा गच्छो के पक्षपातसे विरुद्धाचरण करनेवालोंको झूठा आग्रह छोड़कर जिनाशानें प्रवृत्ति करानेके लिये यद्यपि उपकार बुद्धि से हित शिक्षा रूप लिखने में आया है तिसपर भी किसीको बुरा लगे तो उसकी क्षमा प्रार्थना करता हूं ॥ १६ ॥ श्री कलकत्ता नगर में श्रीशांतिनाथजी की शीतल छाया नीचे यह ग्रन्थ शुरु हुआ और बम्बई नगर में श्रीपार्श्वनाथजी के प्रसादसे परिपूर्ण हुआ है इस लिये जबतक वीरशासनप्रकृति रहे तबतक भव्यजीवोंको शुद्ध मार्गको प्रवृत्ति कराने वाला यह ग्रन्थ इस भरत क्ष ेत्रमें जयवंता वर्त्तो ॥ २०॥ जिनागमानुसार गुरु महाराज की और सरस्वती की कृपासे सत्य ग्रहणाभिलाषी जीवोंको जिनाजा की परीक्षा करने वाला वर्तमानिक भेदोकी भिन्न भिन्न प्ररूपणानें इस ग्रन्थके पूरण होनेमें मेरी आत्माका उद्धार हुआ मैं मानता हूं ॥ २१ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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