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[२२] भरादिकोंके और अपने मच्छके पूर्वज पुरुषोंके कपन किये हुए छ कल्याणक सम्बन्धी सूत्रोंके मोर रत्तियोंके पाठॉका उत्थापन की उत्सूत्र प्ररूपणासे तीर्थकरादि महाराजोंकी आशातनासे अपने संसार बढ़नेके भयको छोड़ कर खरतरगच्छ के पूर्वाचार्यों से देष बुद्धि रखके महान् उपकारी पुरुषोंकी निन्दा करने लगे और कल्याणकोंका निषेध करने के लिये गणधर सार्द्धशतक वृत्ति जम्बूद्वीपपति पवाशकसूत्र सुत्ति पर्युषणाकल्पचूर्णि वगैरह शास्त्र पाठोंका अभिप्राय और उन शास्त्र पाठोंके कर्ताओंके भावार्थक ज्ञानावर्णीय कर्मके उदयसे समझे बिना बस्तु, स्थान, माञ्चयं नीचगौत्रका उदय वगैरह जूठे बहाने निकाटकर अपनी कल्पना मुजब शास्त्रकारों के विरुद्धार्थ में अनेक तरहको कुयुक्तियें लिखकर भद्र जीवीको मिथ्यात्वके भ्रममें गेरनेके लिये 'कल्प किरणाबली' बगैरह लिखा तबसे इस झगड़े का मूल खड़ा हुणा और उसी मुजब अन्ध परम्परामें वर्तमानिक कितने ही कदाग्रही चल रहे है जिसमें भी विशेष खेदकी बात यह है कि बिनय विजयजी और आत्मारामजी कैसे सुप्रसिद्ध वि. द्वान् कहलाते हुए भी गच्छ कदाग्रहके पक्षपातसे धर्मसागरजीकी कुयुक्तियोंके मायाजालमें फंस गये और आगमोक्त सत्य बातको झूठ ठहराने के लिये उसी तरहकी कुयुक्तियें लिखके भोले जीवों को मिथ्यात्वके भ्रम, गेरनेके लिये धिनय विजयजीने कल्प सूत्र की व्याख्याका सुवोधिका नाम रखके और कुयुक्तियोंसे उत्सूत्रता से भोले जीवोंको दुर्लभ बोधिको प्राप्तिका कारण किया है और भास्मारामजीने 'जैन सिद्धान्त समाचारी नामक पुस्तकका नाम रसके उत्सूत्रोंके संग्रह माया जाल फैलाई है इसीलिये उन्हींका सब कुयुक्तियोंके विकल्पोंकी समीक्षा समाधान करके शास्त्र पाठों और युक्तियों के अनुसार सुदृढ़ प्रमाणों सहित Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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