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और त्रिशलाका माश्विन वदी १३ का यह दो व्यवन विनय विजयी उपरोक्त कथनसे सिद्ध होता है इस लिये विनय विजयजीके खोजसे ही दो च्यवनों की गिनतीसे मी वीरप्रभुके छ कल्याणक सिद्ध हो चुके जिस पर भी १ च्यवन मानने वाले को ६४ श्लोकका और उपरोक्त मीसमवायांग सूत्रका पाठ उत्थापनका दोषी ठहरना पड़ेगा यह बात प्रगट ही दिखती है और महापुरुष चरित्र त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र आवश्यक आचासंग स्थानांग कल्पसूत्रादि अनेक सुत्ति वगैरहने माश्विन वदी १३ को च्यवन रूपमें माना है जिसका खुलासा पहिले लिखा गया है इस लिये दो च्यवनका निषेध कोई भव भीरू नहीं कर सक्ता और "कल्याणक चतुष्टय तथा गर्भापहारोपि" इस वाक्यमें चार कल्याणक च्यवन जन्मादि कहके तथा और अयि शब्दसे गर्भापहार रूप त्रिशलाके गर्भमें जानेको पांचवा भी हस्तोतरा नक्षत्र साथ ले लिया और मोक्ष स्वाति नक्षत्रमें लिखा है ऐसा नहीं माननेसे तथा और मपि शब्द व्यर्थ हो जाते हैं और उपरोक्त शास्त्र पाठोंके उत्थापनका भी दूषणको प्राप्ति होवे और त्रिशलाके गर्भ जानेको कल्याणक नहीं मानना एसे प्रमाण किसी शास्त्र में नहीं देखे जाते हैं इस लिये उपरोक्त शास्त्रानुसार मानना ही उचित है विशेष पाठकगण स्वयं विचार लेखेंगे।
और पम्यासजी आनंदसागरजीने सुघोधिकाकी और पंचाशकको प्रस्तावनाने छ कल्याणक निषेध करनेके लिये गणधर सार्धशतकके पाउका भावार्थ समझे बिना मीनिनवमम पूरिजी पर और खरतर गच्छ वालों पर उत्सूत्रताका हठवाद का आक्षेप किया और स्थानाङ्ग आचारांग कल्पसूत्रादि अनेक शास्त्रों के मीवीरप्रभु संबंधि विशेष अपेक्षाके छ कल्याणक
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