________________
[
६
भाया इसलिये च्यवन, ६५ इन्द्रादि मिलकर नन्दीश्वर उच्छवके लिये जावे अपवा नहीं भी जावे जैसा. भवसर परन्तु जन्मादिनें तो नियमसे जाकर उच्छव करते हैं उसको तो आवश्यकत्ति कल्पसूत्रकी व्याख्या त्रिशष्टिशलाका पुरुष चरित्र और उपरोक्त जीवाभिगमादि शास्त्रोंने देखा जाता है परन्तु क्यवन तो बिमानमें बैठे हुए ही नमोस्धुणं कर लेते है इसलिये भगवान् के त्रिशलाके गर्भ में आनेके दिन भी विमानमें बैठे हुए ही नमोरथ मां किया समझ लेना परन्तु आश्विन बदी १३ को ६४ इन्द्रादि मिलकर नन्दीश्वर उच्छव करने को जाने सम्बन्धी पाठ न देखनेसे उसको कल्याणकपने रहित नहीं कह सकते क्योंकि भाषाढ़ सुदी६ को भी नन्दीश्वर उच्छव करनेको इन्द्रादिकके जानेका पाठ देखने में नहीं आता इसलिये जैसे मुदी ६ मानोंगे वैसे बदी १३ भी मानमि पड़ेगी और किसी शास्त्रानुसार वीर्य करके च्यवन भी ६४ इन्द्रादिकके नन्दीश्वर महोत्सवके लिये जानेका नीयत नियम ठहरता होवे तो भी यह बात बदी १३ को भी मान लेनी चाहिये क्योंकि आशन प्रकंप नमोत्थुणं १४ महास्वप्न दर्शन इन्द्रका भागमन वगैरह च्यवन के सब कर्तव्य बदी १३ को बने हैं इसलिये मन्दीखरका महोत्सव भी उपरोक्त लिखे अनुसार समझ लेना चाहिये।
और जिस समय तीर्थंकर माताके गर्भने आवे उसी समय तीन जगतमें उद्योत और सब संसारी जीवोंको मुख की प्राप्ति होनेका तो अनादि नियम है लिये किसी जगह नहीं लिखा होने तो भी उस बातको मान लेना चाहिये क्योंकि अनादि नियमको प्रसिद्ध बातको शास्त्रकार लिखे या न लिखे तो भी उसी मुजन माननेका जैन, प्रसिद्ध जैसे नवकार में मोमरिहताणं इत्यादि
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com